समकालीन क्षणिका खण्ड/अंक-02 अप्रैल 2017
रविवार : 25.06.2017
शील कौशिक
01. अनूठा संगीत
पहाड़ों में अक्सर सुनाई पड़ते हैं
अनूठे संगीत के स्वर
बहती हैं यहाँ
झरनों की राग-रागनियाँ
02. रोया करते हैं
रोया करते हैं पत्थर दिल पहाड़ भी
एक दो आंसू ढुलका कर नहीं
जब वो रोते हैं तो
झरने के झरने बहने लगते हैं
03. चांदनी रात में
छायाचित्र : उमेश महादोषी |
चांदनी रात में
चाँद को छूने की
ललक रखता है समुद्र
उसकी लहरें ज्वार बन
ऊँची उछलती हैं बार-बार
04. एक चिड़िया
एक चिड़िया/सिकर दुपहरी लगातार
एक स्वर में कोई राग अलाप रही है
लगता है/हरे पेड़ों की अदालत में
वह अपना पक्ष रख रही है
05. मन की मैना
मन की मैना का भी
कोई जवाब नहीं
एक मिनट में कहाँ-कहाँ उड़ कर
देश-परदेस होकर लौट आती है
- हाउस नं. 17, हुडा सेक्टर-20, सिरसा-125055, हरि./मोबा. 09416847107
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