समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03 /139 अगस्त 2020
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रविवार : 30.08.2020
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
हरकीरत हीर
कोई ख़्याल
रातभर देता रहा दस्तक
रातभर इक नज़्म जीती
मरती रही .....
02.
हाँ मैंने
कर दिया है क़त्ल
अपनी मुहब्बत का
यकीं न हो तो अपने चेहरे से
कफ़न उतार कर
देख लेना ....
03.
रात बहुत देर तक
ढूँढती रही कुछ अक्षर
नज़्म के लिए
जा बैठे थे कन्दराओं में ...
रब्बा ...!
कितना कुछ खो जाता है
इक शब्द के न रहने से .....
04.
आज यूँ जी
बहुत देर तक तकती रही
तारों से भरा आसमां
डर था ...
कहीं ये अँधेरे घर न कर जाएं
साथ रहते रहते ....
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