Sunday, May 29, 2022

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका                          ब्लॉग अंक-03 /230                           मई 2022 

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01. समकालीन क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श}
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}

रविवार  : 29.05.2022
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।

सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!



उमेश महादोषी




1.

भूख जब नारों को पालती है

किसी सर्प की तरह

केंचुल को उतारती है

अच्छा हो-

भूख रोटी की बात करे

रोटी-

जो मनुष्यता को सँवारती है।


2.


भूख मिलेगी प्यास से

विस्फोट ही होगा

और शरीर के

परखच्चे उड़ जायेंगे

इस तेज धूप में आप

यदि किसी पेड़ को हिलायेंगे।


3.


आँखों का झरना

इस तरह उबलता है

कि भाप से बदन तेरा

कोलतार-सा पिघलता है

पेड़ों की छाया में

कदम-दर-कदम

क्यों तू भूलकर स्वयं को

आग के शोलों से गुजरता है!

रेखाचित्र :  कमलेश चौरसिया 


4.

भूख को देखकर

फसल उग आती है

या फसल को देखकर

भूख अकुलाती है

सूरज के शासन का

सत्य है यही किन्तु

तीखी धूप-सी फैलती है भूख

और फसल कच्ची ही झुलस जाती है।

  • 121, इंदिरापुरम, निकट बीडीए कॉलोनी, बदायूं रोड, बरेली-243001, उ.प्र./मो. 09458929004 

Sunday, May 22, 2022

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका                          ब्लॉग अंक-03 /229                           मई 2022 

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रविवार  :  22.05.2022
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।

सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!


शिव डोयले




01. पतझड़ 


जब भी 

मौसम आयेगा 

डालें सूनी होकर 

रह जायेंगी 

पतझड़ में 

टूटंेगे पत्ते 

हवा जाने कहाँ 

ले जायेगी!


02.  सौंदर्य-2 


फिर नीम के 

पत्तों से 

उतरती है 

आँगन में धूप 

लगा तुमने 

हाथों में 

रचा ली मेंहदी 

निखर आया रूप! 


03. बसंत 

बसंत ही है 


जो जड़ और 

चेतन में 

पैदा कर देता है 

प्रेम 

आम और नीम 

इसी तरह 

खिलते देखा है 

चित्र : प्रीति अग्रवाल 


04. दूरी 

हमारे सीने में भी 

आग है 

तुम अपनी 

घासलेट नजरें 

दूर करो, वरना 

धधक जायेगी 

  • 19, झूलेलाल कॉलोनी, हरीपुरा, विदिशा-464001, म.प्र./मो. 09685444352

Sunday, May 15, 2022

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका                          ब्लॉग अंक-03 /228                           मई 2022 

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रविवार  : 15.05.2022
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।

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राजेश ‘ललित’




01.

मेरी ख़्वाहिश थी

मैं भी हँसूँ 

कभी मुस्कराऊँ

मगर ये ख़्याल ही रहा

अभी तक उस

शिकन से डर लगता है



02.

रास्ता सही था

कीचड़ पर पांव पड़ा

फिसल गया कोई

रास्ता बदल गया

मंज़िल भी बदल गई


03. विकलांग


सब कुछ ठीक था

हाथ भी; पाँव भी

मन भी; मस्तिष्क भी

रेखाचित्र : राजवंत राज 
संवेदनायें थीं लुंज-पुंज

बस जीवन हुआ 

बिखरा-बिखरा सा

मैं पड़ा विकलांग-सा

बिना हिले डुले

प्रतिक्रिया विहीन।

  • बी-9/ए, डीडीए फ़्लैट, निकट होली चाईल्ड स्कूल, टैगोर गार्डन विस्तार, नई दिल्ली-27/मो. 09560604484

Sunday, May 8, 2022

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका                          ब्लॉग अंक-03 /227                           मई 2022 

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रविवार  : 08.05.2022
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शैलेष गुप्त ‘वीर’




01.


सच ने

झूठ की पैरवी की,

न्याय ने

आँखें मूँद लीं!


02.


सच ने

झूठ को

गले लगाया,

ईमान शरमाया!


रेखाचित्र : कमलेश चौरसिया 
03.


झूठ ने

कीर्तिमान गढ़े,

जब सच ने

झूठ के

क़सीदे पढ़े!

  • 24/18, राधा नगर, फतेहपुर-212601, उ.प्र./मो. 09839942005

Sunday, May 1, 2022

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका                          ब्लॉग अंक-03 /226                           मई 2022 

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02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}

रविवार  : 01.05.2022
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।

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पुष्पा मेहरा




01.


मैं अपनों को साथ लेकर चलने के लिए 

रुकी रही 

मुड़कर देखा तो काफिला 

आँखों से ओझल हो चुका था 

तो क्या ये 

कछुआ और खरगोश का ही पर्याय था!! 


02.


हर मौन 

हममें, तुममें, सबमें 

शब्द नहीं- 

एक अर्थ तलाशता रहा

पर निगोड़ी पलकें भी तो

उठ के ही ना दीं!! 


03.


पिता एक रथ, एक चौपाल, 

रेखाचित्र : बी.मोहन नेगी 
आँगन, घर, रसोई, 

दीवार और छत- वट वृक्ष 

उनके बिना समय चक्र में आबद्ध 

सूना, उदास अपनी जगह पर 

स्थिर और पूर्ण तटस्थ उनका रह जाना 

अनपेक्षित तो नहीं लगता।

  • बी-201, सूरजमल विहार, दिल्ली-92/फ़ोन 011-22166598