समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03 / 35 जुलाई 2018
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
हरनाम शर्मा
01. सिर्फ रोटी नहीं
मूलतः कोई रिश्ता नहीं होता
भूख का
फिर भी, बहुत से लोग
निभाते हैं रिश्ते
भूखे रहकर भी
02. उम्मीद
काली चट्टानों से लिपटी
अमरबेल के मध्य झाँकता
धरती की कोख से
सूरज से आँख मिलाने को आतुर
मेरा अस्तित्व
आज नहीं तो कल
काल के गाल पर
तमाचा लगाकर
पता पूछेगा
उसका/उसी से
03. दृष्टि
तपती सड़क पर
पिघलती कोलतार से लिथड़े
तितली के विभाजित दो पंख
आह! तितली की तड़पन!
लोगों ने देखा
वाह! तितली के अलग-अलग पंखों में भी
कितनी खूबसूरती है
04. हिसाब रोशनी का
रेखाचित्र : कमलेश चौरसिया |
वहाँ,
भर लेना तुम अपने दोशिजा आँचल में
यह झिलमिल चमकीली धूप
और मैं/यहाँ
सूरज बनकर
किसी सुहागन-से आँचल की
तलाश में मिलूँगा
प्रतीक्षारत्.......
हिसाब करेंगे तब
हम रोशनी का
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