Sunday, June 25, 2017

खण्ड-2 के क्षणिकाकार-09

समकालीन क्षणिका             खण्ड/अंक-02                   अप्रैल 2017



रविवार  :  25.06.2017

क्षणिका की लघु पत्रिका ‘समकालीन क्षणिका’ के अप्रैल 2017 में प्रकाशित खण्ड-2 में शामिल डॉ. शील कौशिक जी की क्षणिकाएँ। 


शील कौशिक





01. अनूठा संगीत

पहाड़ों में अक्सर सुनाई पड़ते हैं  
अनूठे संगीत के स्वर    
बहती हैं यहाँ  
झरनों की राग-रागनियाँ   
   
02. रोया करते हैं 
रोया करते हैं पत्थर दिल पहाड़ भी  
एक दो आंसू ढुलका कर नहीं  
जब वो रोते हैं तो  
झरने के झरने बहने लगते हैं   

03. चांदनी रात में
छायाचित्र : उमेश महादोषी 

चांदनी रात में  
चाँद को छूने की 
ललक रखता है समुद्र  
उसकी लहरें ज्वार बन  
ऊँची उछलती हैं बार-बार   
  
04. एक चिड़िया 
एक चिड़िया/सिकर दुपहरी लगातार  
एक स्वर में कोई राग अलाप रही है  
लगता है/हरे पेड़ों की अदालत में  
वह अपना पक्ष रख रही है

05. मन की मैना
मन की मैना का भी
कोई जवाब नहीं  
एक मिनट में कहाँ-कहाँ उड़ कर  
देश-परदेस होकर लौट आती है   


  • हाउस नं. 17, हुडा सेक्टर-20, सिरसा-125055, हरि./मोबा. 09416847107  

खण्ड-2 के क्षणिकाकार-08

समकालीन क्षणिका             खण्ड/अंक-02                   अप्रैल 2017



रविवार  :  25.06.2017

क्षणिका की लघु पत्रिका ‘समकालीन क्षणिका’ के अप्रैल 2017 में प्रकाशित खण्ड-2 में शामिल श्री रामेश्वर काम्बोज हिमांशु जी की क्षणिका। 


रामेश्वर काम्बोज हिमांशु




01.
जिनके पैरों के निशान
दफ्तर की गुफा में
भीतर चले जाते हैं
वे कभी वापस नहीं आते हैं।

02.
माना कि
झुलस जाएँगे हम
फिर भी सूरज को
धरती पर लाएँगे हम।

03.
एक अन्धा आईना
फिर अन्धकूप-सा मन
रूप जो तुमने निहारा,
मन ही मन हरषाए
खुद को न पहचाना।

रेखाचित्र : रमेश गौतम 

04.
स्मृति तुम्हारी-
हवा जैसे भोर की
अनछुई, कुँआरी।

05.
घर से चले थे हम
बाहर निकल गए,
अब तो दस्तकों के भी
अर्थ बदल गए।
  •  जी-902,जे एम अरोमा, सेक्टर-75, नोएडा-201301, उ.प्र./मो. 09313727493

Sunday, June 18, 2017

खण्ड-2 के क्षणिकाकार-07

समकालीन क्षणिका             खण्ड/अंक-02                   अप्रैल 2017



रविवार  :  18.06.2017

क्षणिका की लघु पत्रिका ‘समकालीन क्षणिका’ के अप्रैल 2017 में प्रकाशित खण्ड-2 में शामिल डॉ.  बेचैन कण्डियाल जी की क्षणिका।


बेचैन कण्डियाल




01. अपंग
तन्हा रहने की आदत
धीरे-धीरे 
उमंग भर देती है
इन्तजारी
बहुत बुरी चीज है
यह तो
अपंग कर देती है

02. भीड़-भाड़
रेखाचित्र : डॉ. सुरेंद्र वर्मा 

बन्द कमरा/बन्द दरवाजा
बन्द हैं खिड़कियाँ,
फिर भी लगता है/जैसे बहुत
भीड़-भाड़ है इस घर में।

03. टूट जाता है
बहुत से/तागे पिरोकर
देख लिये,
ये दिल है
कि बार-बार/टूट जाता है।

  • ‘आश्ना’, सी ब्लॉक, लेन-4, सरस्वती विहार, अजबपुर खुर्द, देहरादून (उ.खण्ड)/मो. 09411532432

खण्ड-2 के क्षणिकाकार-06

समकालीन क्षणिका             खण्ड/अंक-02                   अप्रैल 2017



रविवार  :  18.06.2017

क्षणिका की लघु पत्रिका ‘समकालीन क्षणिका’ के अप्रैल 2017 में प्रकाशित खण्ड-2 में शामिल डॉ. बलराम अग्रवाल  जी की क्षणिका।


बलराम अग्रवाल



बिटिया : कुछ क्षणिकााएँ

01.
बिटिया ने
न ‘अ’ पढ़ा न ‘आ’
न ‘क’ ‘ख’ ‘ग’
उसने कुछ नहीं पढ़ा
खदान से निकले कोयले
या/सीमेंट, रेत, बदरपुर के सिवा।

02.
बिटिया ने
‘अ’ पढ़ा
‘आ’ पढ़ा और
‘क’ ‘ख’ ‘ग’ भी
उसने कुछ नहीं पढ़ा
स्टेथोस्कोप, पिल्स, नाइफ
और नुकीली बहसों के सिवा।

03.
बिटिया ने/सब कुछ पढ़ा-
रेखाचित्र  : सुरेंद्र  वर्मा 

खदान, खेत, बिल्डिंग,
ऑपरेशन, बहसें, फील्डिंग
और घर-गृहस्थ फीडिंग

बिटिया/बिटिया न रही
उदाहरण बन गयी।

04.
शेर से, चीते से
चोर से, डाकू से
या/दस कोस दूर
शहर में ऊँघते कोतवाल से
दद्दू किसी से नहीं डरते

वे डरते हैं
आँगन में दिनों

05.
हिलती है/न डुलती है
न हटती-टलती है

अम्मा के कलेजे पर
बिटिया
टिक गयी है पत्थर-सी।

  • एम-70, निकट जैन मन्दिर, नवीन शाहदरा (उल्धनपुर), दिल्ली-110032/मो. 08826499115

Sunday, June 11, 2017

खण्ड-2 के क्षणिकाकार-05

समकालीन क्षणिका             खण्ड/अंक-02                   अप्रैल 2017



रविवार  :  11.06.2017

क्षणिका की लघु पत्रिका ‘समकालीन क्षणिका’ के अप्रैल 2017 में प्रकाशित खण्ड-2 में शामिल डॉ. महाश्वेता चतुर्वेदी जी की क्षणिका।

महाश्वेता चतुर्वेदी






01. हुनर
बेरोज़गारी के शाप से संत्रस्त
मैं रोया नहीं
निराशा का बीज बोया नहीं
हुनर की चाबी पहचानकर
खोल डाला प्रतिभा का द्वार
अब हाथ जोड़कर खड़े हैं
ढेरों व्यापार!

02. आहुति
सत्कर्मों की आहुति ने
कर दिया सुवासित

जीवन-यज्ञ।
छायाचित्र : उमेश महादोषी 

03. सृजन-स्वप्न
ऊबड़ खावड़, टेढ़े मेढ़े रास्ते,
गड्ढे-कुंवे, दलदल,
उतार-चढ़ाव
पंकिल-जल,
पग-पग पर विषमतायें
यही छिपाये हैं
नूतन सृजन-स्वप्न!

  • 24, आँचल कॉलौनी, श्यामगंज, बरेली-243005 (उ.प्र.)/मो. 09719687166

खण्ड-2 के क्षणिकाकार-04

समकालीन क्षणिका             खण्ड/अंक-02                   अप्रैल 2017



रविवार  :  11.06.2017

क्षणिका की लघु पत्रिका ‘समकालीन क्षणिका’ के अप्रैल 2017 में प्रकाशित खण्ड-2 में शामिल डॉ. योगेंद्रनाथ शर्मा ‘अरुण’ जी की क्षणिकाएँ


योगेंद्रनाथ शर्मा ‘अरुण’



01. तब और अब
तब फक्कड़ मस्त कबीर
रच कर साखियाँ
खूब फटकारता था दोनोँ को
और दोनों जुड़ जाते थे,
अब नेता जी आकर
देते हैं जहरीला भाषण
उकसाते हैं दोनों को
और दोनों भिड़ जाते हैं!

02. वो क्षण
‘‘जाने कौन सा क्षण था

वह...
जब छुआ था तुमने
और/गुनगुना उठा था
मैं अनायास ही।’’
 छायाचित्र : उमेश महादोषी 

03. ज़िन्दगी
फूल बहुत प्यारे लगते हैं
इनके रंगों में झलकती है ज़िन्दगी
ये बिखेरते हैं खुशियाँ हर पल
मुरझाने से पहले
और मुरझाने पर भी
कभी नहीं होते निराश!
शायद यही है असली ज़िन्दगी!

04. सच्ची पूजा
रोज़ वे जाते हैं मंदिर
उधर वाले भी पढ़ते हैं नमाज़
और चर्च में भी रहती है खूब
चहल-पहल,
लेकिन एक कुटिया में बैठा
फकीर
करता रहता है किसी कोढ़ी के
रिसते घावों की मरहम-पट्टी!
सोचता हूँ इन सबमें
किसे मिलेगा ईश्वर, खुदा, गॉड?

  •  74/3, न्यू नेहरु नगर, रुड़की-247667, जिला हरिद्वार, उ. खण्ड/मो. 09412070351

Sunday, June 4, 2017

खण्ड-2 के क्षणिकाकार-03

 समकालीन क्षणिका             खण्ड/अंक-02                   अप्रैल 2017



रविवार  :  04.06.2017

क्षणिका की लघु पत्रिका ‘समकालीन क्षणिका’ के अप्रैल 2017 में प्रकाशित खण्ड-2 में शामिल श्री श्यामसुंदर निगम जी की क्षणिका।


श्यामसुंदर निगम




डॉ. मृत्युन्जय!
अब मत हो ज्यादा परेशान 
तुम और तुम्हारी पैथी 
बिठा चुके सारे मीजान 
पूरे हो गए इम्तिहान 
मेरे और तुम्हारे
नतीजा तुम्हारी डबडबायी आँखों में-
...पढ़ पा रहा हूँ मैं 
नाप सकता हूँ मिमी- सेमी 3डी बेकली 
तुम चाहो तो भी नहीं बन सकते नचिकेता 
मैं भी नहीं बन पाऊँगा ययाति
तुम/संभालो अपनी दूकान 
मैं/समेट रहा हूँ अपना सामान।
  • 1415, रतनलाल नगर, कानपुर-208022/मो. 09415517469

खण्ड-2 के क्षणिकाकार-02

 समकालीन क्षणिका             खण्ड/अंक-02                   अप्रैल 2017



रविवार  :  04.06.2017

क्षणिका की लघु पत्रिका ‘समकालीन क्षणिका’ के अप्रैल 2017 में प्रकाशित खण्ड-2 में शामिल डॉ. सुरेन्द्र वर्मा जी की क्षणिकाएँ।


सुरेन्द्र वर्मा 





01.
तुम चुप रहीं 
पर चुपचाप कितना बोल गईं
आँखें बंद थी तुम्हारी
पर कितना कुछ बता गईं
शब्द नहीं,/एक श्वास, एक उच्छ्वास ही काफी है
02. खिल उठी
किसी अप्सरा ने जैसे
अपने नर्म और रक्ताभ
होंठ खोले हों
कली क्या चटकी
कि फूल की पाँखुरी
थोड़ी झिझकी
और खिल उठी
03.
क्यों दीवार से पीठ करे बैठी हो?
चार ईंटों के बीच
देखो, एक झरोखा भी है
और कोई रख गया है
उसमें एक दीया
रोशनी तुम्हें बुलाती है
सुनो तो उसकी पुकार!
छायाचित्र  : उमेश महादोषी 
04. मौसम का मिजाज
तुम्हारे चेहरे पर
पता ही नहीं चलता
मौसम का मिज़ाज
दबे पाँव आता है बादल
और दबे पाँव चला जाता है!
05. तुम्हारी आँखों में
हरी घास पर पानी की बूँदें
और बाद बारिश
उन पर सूरज का चमकना
तुम्हारी आँखों में
खुशियाँ झिलमिलाती हैं
  • 10, एच.आई.जी.; 1-सर्कुलर रोड, इलाहाबाद (उ.प्र.)/ मो. 09621222778