समकालीन क्षणिका खण्ड/अंक-02 अप्रैल 2017
रविवार : 04.06.2017
क्षणिका की लघु पत्रिका ‘समकालीन क्षणिका’ के अप्रैल 2017 में प्रकाशित खण्ड-2 में शामिल डॉ. सुरेन्द्र वर्मा जी की क्षणिकाएँ।
01.
तुम चुप रहीं
पर चुपचाप कितना बोल गईं
आँखें बंद थी तुम्हारी
पर कितना कुछ बता गईं
शब्द नहीं,/एक श्वास, एक उच्छ्वास ही काफी है
आँखें बंद थी तुम्हारी
पर कितना कुछ बता गईं
शब्द नहीं,/एक श्वास, एक उच्छ्वास ही काफी है
02. खिल उठी
किसी अप्सरा ने जैसे
अपने नर्म और रक्ताभ
होंठ खोले हों
कली क्या चटकी
कि फूल की पाँखुरी
थोड़ी झिझकी
और खिल उठी
किसी अप्सरा ने जैसे
अपने नर्म और रक्ताभ
होंठ खोले हों
कली क्या चटकी
कि फूल की पाँखुरी
थोड़ी झिझकी
और खिल उठी
03.
क्यों दीवार से पीठ करे बैठी हो?
चार ईंटों के बीच
देखो, एक झरोखा भी है
और कोई रख गया है
उसमें एक दीया
रोशनी तुम्हें बुलाती है
सुनो तो उसकी पुकार!
क्यों दीवार से पीठ करे बैठी हो?
चार ईंटों के बीच
देखो, एक झरोखा भी है
और कोई रख गया है
उसमें एक दीया
रोशनी तुम्हें बुलाती है
सुनो तो उसकी पुकार!
छायाचित्र : उमेश महादोषी |
04. मौसम का मिजाज
तुम्हारे चेहरे पर
पता ही नहीं चलता
मौसम का मिज़ाज
दबे पाँव आता है बादल
और दबे पाँव चला जाता है!
तुम्हारे चेहरे पर
पता ही नहीं चलता
मौसम का मिज़ाज
दबे पाँव आता है बादल
और दबे पाँव चला जाता है!
05. तुम्हारी आँखों में
हरी घास पर पानी की बूँदें
और बाद बारिश
उन पर सूरज का चमकना
तुम्हारी आँखों में
खुशियाँ झिलमिलाती हैं
हरी घास पर पानी की बूँदें
और बाद बारिश
उन पर सूरज का चमकना
तुम्हारी आँखों में
खुशियाँ झिलमिलाती हैं
- 10, एच.आई.जी.; 1-सर्कुलर रोड, इलाहाबाद (उ.प्र.)/ मो. 09621222778
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