समकालीन क्षणिका खण्ड/अंक-02 अप्रैल 2017
रविवार : 25.06.2017
रामेश्वर काम्बोज हिमांशु
01.
जिनके पैरों के निशान
दफ्तर की गुफा में
भीतर चले जाते हैं
वे कभी वापस नहीं आते हैं।
02.
माना कि
झुलस जाएँगे हम
फिर भी सूरज को
धरती पर लाएँगे हम।
03.
एक अन्धा आईना
फिर अन्धकूप-सा मन
रूप जो तुमने निहारा,
मन ही मन हरषाए
खुद को न पहचाना।
04.
स्मृति तुम्हारी-
हवा जैसे भोर की
अनछुई, कुँआरी।
05.
घर से चले थे हम
बाहर निकल गए,
अब तो दस्तकों के भी
अर्थ बदल गए।
- जी-902,जे एम अरोमा, सेक्टर-75, नोएडा-201301, उ.प्र./मो. 09313727493
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