Sunday, July 25, 2021

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

 समकालीन क्षणिका                      ब्लॉग अंक-03 /186                        जुलाई 2021

क्षणिका विषयक आलेखों एवं विमर्श के लिए इन लिंक पर क्लिक करें-

01. समकालीन क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श}
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}

रविवार  : 25.07.2021
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।

सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है! 


सुशीला जोशी



01.


पनिहारिने 

शहर चली गयीं 

और तड़प उठा 

गाँव का पनघट।


02.


सूखी लकड़ी 

स्वयं जलकर 

रेखाचित्र : राजेंद्र परदेसी 

करती है मुकाबला 

कड़कड़ाती ठंड का।


03.


अपने में जल समेटकर 

रखने वाला घड़ा 

तैरता है जल में 

खुद रीत कर।


  • 948/3 योगेन्द्रपुरी, रामपुरम गेट, मुजफ्फरनगर, उ.प्र./मो. 09719260777

Sunday, July 18, 2021

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका                      ब्लॉग अंक-03 /185                        जुलाई 2021

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रविवार  : 18.07.2021
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।

सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है! 


रमेशकुमार भद्रावले




01. रोटी


रोटी की जिन्दगी

आज,

कितनी कम हो गई

बनी, तवे पर चढ़ी

और

खत्म हो गई!


02. व्यथा


साथ-साथ,

चल रहे थे,

जरा मुंडी उधर की

कहाँ चले गये,

दुनिया के सारे,

तार-बेतार-फोन

चिठ्टी, सन्देश सब

बेकार हो गये!


03.  सबक


सिखाने गिराने,

रेखाचित्र : मॉर्टिन जॉन 
न ही चोट

पहुँचाने के लिए,

वो लगती है,

सिर्फ आदमी को

लगे कि ठोकर भी,

दुनिया की सबसे

बड़ी गुरु होती है,!

  • गणेश चौक, हरदा, म.प्र./मो. 09926482831

Sunday, July 11, 2021

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

 समकालीन क्षणिका                      ब्लॉग अंक-03 /184                        जुलाई 2021

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रविवार  : 11.07.2021
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।

सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है! 


अनीता ललित



01.

जीवन के गहरे अँधेरों को...

ना मिटा सके जब... चन्दा-तारे भी...

बनकर मशाल खुद जली मैं...


और राहें अपनी ढूँढीं मैनें... अक्सर...


02.

कई बार... अपने आँगन में...

जब दीया जलाया है मैनें,

संग उसके...

खुद को जलाया है मैनें...

और खुद ही... 

रेखाचित्र : कमलेश चौरसिया 
अपनी राख बटोरी मैंने... अक्सर...


03.

तमन्नाओं के सहरा में भटकते हुए...

ऐसा भी हुआ कई बार...

थककर जब भी बैठे हम...

खुद आप ही...

गंगा-जमुना बने हम।

  • 1/16, विवेक खंड, गोमतीनगर, लखनऊ-226010, उ.प्र.

Sunday, July 4, 2021

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

  समकालीन क्षणिका                      ब्लॉग अंक-03 /183                        जुलाई 2021

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रविवार  : 04.07.2021
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।

सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है! 


संतोष सुपेकर




01.

एक छाँव का निधन हो गया है

एकाएक।


बरसों पुराना बड़ा-सा पेड़

गिरा दिया गया है 

षणयंत्रपूर्वक, कल।।


02. 

ताजमहल देख लिया क्या?

आओ, अब दिखाऊँ तुम्हें

छत, मेरे घर की।


इस छत से

बरसों पहले

दिखता था ताजमहल।।

रेखाचित्र : सिद्धेश्वर 


03. 

बहुत लम्बे समय से

अच्छे लोगों की तलाश में था मैं।


अच्छे लोग मिले भी मुझे

हाँ, मिले

अच्छे लोग मिले मुझे,

हालाँकि

उनकी उम्र चार वर्ष से कम थी।।

  • 31, सुदामानगर, उज्जैन-456001, म.प्र./मो. 09424816096