Sunday, November 29, 2020

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका                      ब्लॉग अंक-03 /152                       नवम्बर 2020



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01. समकालीन क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श}
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रविवार  : 29.11.2020
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।

सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है! 


ज्योत्स्ना  प्रदीप 



01.


कुछ लोगों ने

नेकियों पर

बोली लगाई

किसी की

प्रत्युत्तर

आवाज़ न आई!


02.


दिन अब ये भी

आने लगे 

हमारे रीति-रिवाज़

समय की चौकी में

शिकायत दर्ज़

कराने लगे!


03.


तुम

रेखाचित्र : अनुभूति गुप्ता 

उस समय हमें

छोड़कर लौट रहे थे

जब आँसुओं के

गर्म-कुण्ड में

हम औट रहे थे!

  • मकान 32,गली नं. 09, न्यू गुरुनानक नगर ,गुलाब देवी हॉस्पिटल रोड जालंधर-144013, पंजाब/मो. 06284048117

Sunday, November 22, 2020

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका                      ब्लॉग अंक-03 /151                       नवंबर 2020



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रविवार  : 22.11.2020
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।

सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है! 


नारायण सिंह निर्दाेष





01. सामाजिक-विकास

हम ठहरे

पुराने ज़माने के लोग;

प्यार से खींचिए

अगर इनके गाल

तो खि़लाफत पर उतर आते हैं

बच्चे।


12. एक अलग सुबह


रात भर चलते रहने के बाद

जब होती हुई

एक सुबह को देखा,

तो वह सुबह/और सुबहों से

कुछ अलग-सी दिखी।


पथरीले फर्श को तोड़कर

छायाचित्र : उमेश महादोषी 

उग आई

वह मुलायम दूब

मुझे बहुत अच्छी लगी।


  • सी-21, लैह (LEIAH) अपार्टमेन्ट्स, वसुन्धरा एन्क्लेव, दिल्ली-110096/मो. 09650289030

Sunday, November 15, 2020

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका                      ब्लॉग अंक-03 /150                      नवम्बर 2020



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रविवार  : 15.11.2020
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
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ज्योत्स्ना शर्मा 




01.

देखे...
हवाओं के सितम
और जागती रही 
बेचैन रात....
ख़्वाहिश में,
चैन से सोने की 
तेज़ी से...
भागती रही। 

02.

हौले से सहला,
आ ..तुझे गोद में
प्यार से सुलाऊँ...
बदन निष्कम्प !
काँपती रूह को
ढाँढस कैसे बँधाऊँ?
रेखाचित्र : राजेंद्र परदेसी 

03.

दूर क्षितिज में
करता वंदन
नभ नित
साँझ-सकारे
प्रतिपूजन में
धरकर दीप धरा भी 
मिलती बाँह पसारे!
  • एच-604, प्रमुख हिल्स, छरवाडा रोड, वापी, जिला-वलसाड-396191, गुजरात/मो. 09824321053

Sunday, November 8, 2020

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका                      ब्लॉग अंक-03 /149                       नवम्बर  2020



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रविवार  : 08.11.2020
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेग।

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उमेश महादोषी




01.


तुम याद आते रहे

मैं भूलता रहा

मैंने देखा है 

कितनी ही बार

एक जहरीला साँप

झूला झूलता रहा।


02.


परस्पर गुँथे

फंदों में

उलझ गये हैं बाल

मेरे महबूब!

सँभाल सकता है

तो सँभाल।


03.


हवा से

ब्याही गयी है तरंग

देखो-

ये खोखली उमंग!


04.


समय कुछ नहीं होता

एक हल्की-सी फूक से

उड़ जाता है

मन मजबूत हो

तो पेट की भूख से

कुछ नहीं होता!

चित्र : प्रीती अग्रवाल 


05.


प्रेम करने से

क्या होता है!

क्षणभर झूले पर

साथ बैठने का दृश्य कोई

आँखों में भर भी जाये

एक बार मन भर जाने से

क्या होता है!

  • 121, इन्द्रापुरम, निकट बीडीए कॉलोनी, बदायूँ रोड, बरेली-243001, उ.प्र./मो. 09458929004


Sunday, November 1, 2020

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

 समकालीन क्षणिका                      ब्लॉग अंक-03 /148                        नवम्बर 2020


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रविवार  : 01.11.2020
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
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अमरेन्द्र सुमन




01.

झूठ के गुलदस्ते में

सच के फूलों को देखना 

प्रतिकार नहीं

फिर भी क्यूँ 

यह हर एक को स्वीकार्य नहीं?


02.

चीन

तलाश रहा 

पचास के दशक से 

अब तक सिर्फ अपने 

स्वार्थ और वर्चस्व की जमीन


सिर्फ झूठ, धोखा 

और फरेब में ही प्रवीण। 


03. माँ -एक

सुकून भरी नींद

हाथ का पंखा है माँ

चित्र : प्रीति अग्रवाल 
सुहागिन सिन्दूर

और चूड़ी-शंखा है माँ


04. माँ -दो

नैनों की प्रतिष्ठा

प्रश्रय प्रतिज्ञा है माँ

द्रौपदी-उत्तरा

सविनय अवज्ञा है माँ

  • ’’मणि विला’’ प्राईमरी स्कूल के पीछे, केवटपाड़ा (मोरटंगा रोड) दुमका-814101, झारखण्ड/मो. 09431779546