Sunday, September 27, 2020

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका                      ब्लॉग अंक-03 /143                      सितम्बर 2020



क्षणिका विषयक आलेखों एवं विमर्श के लिए इन लिंक पर क्लिक करें-
01. समकालीन क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श}
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}

रविवार  : 27.09.2020
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!


ज्योत्स्ना शर्मा 





01.

हमारी...
समाज की...
पीड़ा की कोई सीमा न थी 
एक दुःखद, कड़वा सत्य 
अनावृत था... और...
‘तमाशबीनों’ के पास 
चादर न थी...
इतने निर्मम...
कैसे हो गए हम...??

02.

पड़ा है पर्स
चेन, बिखरे वस्त्र
और कोई भी 
आसपास नहीं
जाने क्यों...
इस खेत के गन्ने में
ज़रा भी
मिठास नहीं!

03.

पर्यावरण दिवस!
कुछ ऐसे मनाएँ
पेड़ लगाएँ 
और फिर...
करें दुआएँ..
रेखाचित्र : कमलेश चौरसिया 
कि...
उन पर लटकते 
फल ही नज़र आएँ !!!

04.

सड़क बोलती है-
जिधर चाहते हो
उधर मोड़ते हो, 
हैरत है लेकिन 
मैं जोड़ती हूँ 
तुम तोड़ते हो!
  • एच-604, प्रमुख हिल्स, छरवाडा रोड, वापी, जिला-वलसाड-396191, गुजरात/मो. 09824321053

Sunday, September 20, 2020

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका                      ब्लॉग अंक-03 /142                       सितम्बर 2020



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रविवार  : 20.09.2020
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!


भावना कुँअर





01. दर्द-2

मिलके साथ
हमने थे सजाए
प्यार की रोशनी की
हजारों दीए
समेटतें हैं अब
किरचों को दर्द की।

02. छाया

पाने को छाया
हम जा बैठे, 
पेड़ के नीचे
पर जाने क्यों 
रेखाचित्र : संध्या तिवारी 
डालियों ने 
धर-दबोचा हमें।

03. शिकन

मेरे चेहरे की शिकन
मचा देती थी
एक तूफान
उनके दिल में
पर आज
कैसा बदला ये मौसम
जो अब शिकन बन गई
उनके दिल बहलाने की वजह।
  • सिडनी, आस्ट्रेलिया/ ईमेल : bhawnak2002@gmail.com
  • भारत में : द्वारा श्री सी.बी.शर्मा, आदर्श कॉलोनी, एस.डी.डिग्री कॉलिज के सामने, मुज़फ़्फ़रनगर(उ.प्र.)

Sunday, September 13, 2020

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका                      ब्लॉग अंक-03 /141                      सितम्बर 2020



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रविवार  : 13.09.2020
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!

केशव शरण






01. तपता टिन


मैं चिलचिलाती धूप में नहीं हूँ
मैं तपते टिन के नीचे हूँ
गरमी से बिलबिलाता
सोचता हूँ पेड़ के नीचे चला जाऊँ
पर,कहाँ मेरी छड़ी है
रेखाचित्र : डॉ सुरेंद्र वर्मा 
कहाँ मेरा छाता

02. समझ में नहीं आता

धर्म कहाँ होगा?
राजनीति कहाँ जायेगी?
व्यापार का क्या होगा?

समझ में नहीं आता
बुराइयाँ
कैसे ख़त्म होंगी?
  • एस 2/564 सिकरौल वाराणसी-221002/मो. 09415295137

Sunday, September 6, 2020

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका                      ब्लॉग अंक-03 /140                      सितम्बर 2020



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रविवार  : 06.09.2020
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
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राजेश ‘ललित’ शर्मा





01.

थे मौजूद हम भी 
उसी महफ़िल में
देखा तुमने भी
कनखियों से 
और निकल गये।

02.

आना-जाना इधर,
कम हो गया अपने घर।
लोगों का बस;
मतलब निकल गया है।
रेखाचित्र : (स्व ) पारस दासोत 

03. 
     
पहना दो मुझे
चश्मा सच का
कोई सच भी कहता है
मुझे झूठ नज़र आता है

04 .

जब तक ख़्वाब था
बहुत हसीन था!
ज़मीन हक़ीक़त की मिली;
वो पत्थर हो गया
  • बी-9/ए, डीडीए फ़्लैट, निकट होली चाईल्ड स्कूल, टैगोर गार्डन विस्तार, नई दिल्ली-27/मो. 09560604484