Sunday, April 29, 2018

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका            ब्लॉग अंक-03 / 23                    अप्रैल 2018


रविवार  :  29.04.2018 


‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा। 
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है! 



सुरेन्द्र वर्मा




01. हिरण की पुकार

ग़ज़ल बन जाती है
हिरण की पुकार
काश ग़ज़ल भी पुकारती
और दर्द मेरा 
हिरण हो जाता

02. उथले पानी में

जैसे मेरा मन
नाचता है बेबस
मछलियाँ नाचती हैं
पानी में उथले

03. लेकिन अंधकार में भी

कितना अंधेरा है
हाथ को हाथ दिखाई नहीं देता
लेकिन अंधकार में भी
मेरा मन
तुम्हें ढूँढ़ लेता है

04. नहीं चाहिए मुझे

नहीं, नहीं चाहिए मुझे
ऐसा कोई देश
जहाँ अपना न हो कोई
न पराया....
अपने ‘आप’ को नहीं
होने देना है मुझे
ज़ाया.....

05. तुम्हारी आहट

कितनी ही बार
रेखाचित्र : डॉ. सुरेंद्र वर्मा 

तुमने दस्तक दी
लेकिन तुम्हारी आहट
अनसुनी रह गई
जानते हुए
कि तुम सिरहाने हो
कहीं दूर तुम्हें देखता रहा
पुकारता रह गया

06. यह छोटी सी तितली

यह छोटी सी तितली
एक उम्मीद जगाती है
कि आसमान कभी रिक्त हुआ
तो सर्वप्रथम/यही उसे भरेगी
अपने रंग और अपनी उड़ान से
कॅनवस कभी खाली नहीं रहेगा

  • 10, एच.आई.जी.; 1-सर्कुलर रोड, इलाहाबाद (उ.प्र.)/मो. 09621222778 

Sunday, April 22, 2018

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका            ब्लॉग अंक-03 / 22                    अप्रैल 2018


रविवार  :  22.04.2018 


‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा। 
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है! 


शेर सिंह





01. याद

मन के
गार में फंसी तुम्हारी याद 
मचल उठती है जब-तब 
काले पन्नों में चमकते 
सफेद अक्षरों सी। 

02. हिम शिखरों पर

हिम शिखरों पर फैली 
सूर्य की गर्मी छिटकी हो जैसे 
चांदनी की 
नर्मी  

03. लड़ाई

लड़ाई तो लड़ाई है 
कोई पत्थर से वार करे 
छायाचित्र : डॉ. ज्योत्श्ना शर्मा 

कोई शब्द और बुद्धि से 
होते हैं घायल 
दोनों से। 

04. समीर

प्रातः काल की
लाल रश्मियों में लिपटा
शीतल समीर उघाड़ रहा  
किसी बात की पांतें गम्भीर।  

  • नाग मंदिर कालोनी, शमशी, कुल्लू, हिमाचल प्रदेश-175126/मो. 08447037777

Sunday, April 15, 2018

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका            ब्लॉग अंक-03 / 21                    अप्रैल 2018


रविवार  :  15.04.2018 


‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा। 
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है! 


पुष्पा मेहरा 




01.

चलती-फ़िरती ज़िन्दगी है 
बारूद है, गोलियाँ हैं 
बीच में बूँद-बूँद सूखती नदी 
और नदी के उस पार है रंग भरता 
उभरता हुआ सूरज...

02. 

खिलते ही कली  
काँटों से घिर गई 
भोली-भाली थी 
पाँख-पाँख चिर गई।  

03.

तुम्हारे और मेरे बीच 
मौन संवाद चलता रहा 
आखें- कभी रोईं तो कभी हँसीं।

04. 

अँधेरा कितनी बार 
छायाचित्र : उमेश महादोषी 
मेरे द्वार पर आया,
पर मैं - 
संकल्प-मन्त्र पढ़, 
उसे भगाती रही,
अँधेरे-उजाले की 
लड़ाई अभी ज़ारी है।

05.

संस्कारों में पली माँ 
अनुभवों के हीरे 
बिन माँगे लुटा गई, 
सारे के सारे पत्थर से 
लुढ़क रहे हैं।
  • बी-201, सूरजमल विहार, दिल्ली-92/फ़ोन 011-22166598

Sunday, April 8, 2018

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका            ब्लॉग अंक-03 / 20                    अप्रैल 2018


रविवार  :  08.04.2018 


‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा। 
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!



नलिन




01.

अभी अभी एक तितली
नागफनी पर उड़ी थी
अभी एक भूली बयार
मेरे जीवन की ओर मुड़ी थी
नागफनी भी मेरे जीवन की भांति
काँटों से घिरी अडिग खड़ी थी
कह गई उससे तितली और मुझसे बयार
कि जीना यही है

02.

सुधियों की डाली जब
प्राण विहग आ बैठा
कोसों की उड़ान अब
कब थकान लगती है
कल बीती बात बात
युग बीती लगती है

03.

रेखाचित्र : शशिभूषण बडोनी 
आभास दिला जाएगी
पसीने का, चुटकीभर हवा
मुट्ठी में बंद दिवस
छटपटा गिरा दूँगा
कल न यह हवा होगी
न ही मुट्ठी में दिन होगा
खड़ा, बूँद बूँद बहता
विश्वास मैं देखूँगा 

04.

क्षण क्षण रीता
स्मृतियों का अमृत बीता
पीते रहे दिवस सांत्वना
सूखे ओठों की गीली कोरों से

  • 4 ई 6, तलवंडी, कोटा-324005, राजस्थान/ मो. 09413987457

Sunday, April 1, 2018

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका            ब्लॉग अंक-03 / 19                    अप्रैल 2018


रविवार  :  01.04.2018 


‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा। 
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!



जियाउर रहमान जाफरी





01.

चावल, रोटी 
और तरकारी 
बीती इसमें 
उम्र हमारी 

02.

ज्योतिष बन
उसने 
क्या-क्या देखा 
नहीं दिखी पर 
हाथ की रेखा...

03.

पत्नी माँ बेटी पे 
छायाचित्र : अभिशक्ति गुप्ता 

कविता 
रो रही लेकिन 
घर की सीता...

04.

उसने कहा 
क्या तुम्हारा प्रेम एक छल है 
मैंने कहा नहीं 
मात्र एक गुरुत्वाकर्षण बल है...

  • हाई स्कूल, माफी, नालंदा-803107, बिहार/मो. 09934847941