Sunday, August 28, 2016

प्रथम खण्ड के क्षणिकाकार-01

समकालीन क्षणिका             खण्ड-01                  अप्रैल 2016



मित्रो,

क्षणिका की लघु पत्रिका ‘समकालीन क्षणिका’ का प्रवेशांक अप्रैल 2016 में प्रकाशित कर दिया गया है। पत्रिका में प्रकाशित सभी क्षणिकाओं को इस ब्लॉग के माध्यम से इन्टरनेट के पाठकों को भी उपलब्ध करवाया जायेगा। प्रथम अंक में प्रकाशित क्षणिकाओं में से क्रमशः दो या तीन क्षणिकाकारों की क्षणिकाएँ प्रत्येक रविवार को प्रकाशित की जायेंगी। पहली कड़ी में प्रस्तुत हैं रूप देवगुण जी एवं सुधा गुप्ता जी की क्षणिकाएँ।



रूप देवगुण
  


01. रेगिस्तान की तपती रेत पर नंगे पाँव चलना बहुत बड़ी बात सही पर मैं हूँ कि सारे रेगिस्तान को निकला हूँ नखलिस्तान में बदलने 

02. पहाड़ की बेटी है नदी पहाड़ को छोड़ने को नहीं करता है उसका मन पर क्या करे समुद्र बुला रहा है उसे बारम्बार 

03. चलो चलें पहाड़ पर बैठ कर झरने के पास बिन नहाए नहा लें अन्दर तक 

04. मैं बैठा हूँ चट्टान पर
छाया चित्र : उमेश महादोषी 
और कर रहा हूँ इन्तज़ार छेड़खानी करे समुद्र मुझसे छींटे फेंक कर 


05. आधी रात को सो रहे हैं सब पर समुद्र ले रहा है करवटें समझने की कोशिश करो उसके दर्द को 

  • 13/676, डॉ. गाँधी वाली गली, गोबिन्द नगर, सिरसा-125055 (हरि.)/मोबा. 09812236096

Saturday, August 27, 2016

प्रथम खण्ड के क्षणिकाकार-02

समकालीन क्षणिका             खण्ड-01                  अप्रैल 2016


क्षणिका की लघु पत्रिका ‘समकालीन क्षणिका’  के खण्ड अप्रैल 2016 में प्रकाशित सुधा गुप्ता जी की क्षणिकाएँ।

सुधा गुप्ता


01. तुम्हें विदा दे ज्यों ही मुड़ी, देहरी के पार एक साथ यादें करने लगीं कदम ताल....

 02. रात-माँ बड़ी, परेशान थी रात-माँ सर्दी न खा जाएँ कहीं शरारती बच्चे तारे कोहरे का कम्बल ओढ़ा कर ऊँचे पलँग पर बैठा दिया है....

03. मृग-जल
रेखाचित्र :बी.मोहन नेगी 
हौले-से तुमने/तपता मेरा हाथ छुआ, और पूछा- ‘अब कैसी हो?’ .....झपकी आई थी!
  04. अंजुरि में अंजुरि में भर तो ली थी जलधार जाने कब रीत गई चोट/बहुत गहरी बड़ी गहरी थी भरने की कोशिश में उम्र सभी बीत गई... 05. लादी- तुम्हें भी ढोनी थी और मुझे भी इसे क़िस्मत कहो या कर्मफल तुम्हें मिली नमक की लादी और मुझे कपास की...
  • 120 बी/2, साकेत, मेरठ-250003, उ.प्र./फोन: 0121-2654749