Sunday, March 25, 2018

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका            ब्लॉग अंक-03 / 18                      मार्च 2018


रविवार  :  25.03.2018 


‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा। 
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!


भावना सक्सैना





01. प्रेम

प्रेम सूर्य है
नित निरन्तर
मद्धम आंच से सेंकता
अन्तस् को करता सशक्त
प्रेम सूर्य है
सेंकता है जो
किनारे के पत्थरों को
भीतर तक।

02.

जाना है दूर, लंबा सफर
रोशनी ज़रा रखो मद्धिम
कि हथेली पे सूरज धर
आती हैं कहां राहें नज़र?

03.

कई शहर हैं ढके बर्फ से
ठंड से सिकुड़ गए हैं तन,
फिर भी बेहतर उन गलियों से 
जहाँ जमे पड़े हैं मन।

04.

क्यूँ रिश्ते सभी 
उम्र के छोटे होते हैं?
चार दिन मुस्कुराहटों में
बाद... जिंदगी भर ढोते हैं।

रेखाचित्र : (स्व.) बी.मोहन नेगी 

05. चिंगारी

यूँ अंधेरा हारा सदा
एक ज़रा चिंगारी से
फिर भी देखो अब तलक
रोशनी के दायरे कम हैं
कि चिंगारी जो लौ न बने
तो कहीं टिकती नहीं।

  • 64, प्रथम तल, इंद्रप्रस्थ कॉलोनी, सेक्टर 30-33, फरीदाबाद, हरियाणा-121003

Sunday, March 18, 2018

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका            ब्लॉग अंक-03 / 17                      मार्च 2018


रविवार  :  18.03.2018 


‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा। 
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!


बलराम अग्रवाल




01.

गौरैया-कोयल-मैना
सावन-वसंत-शरद
सभी कुछ है
यहाँ से वहाँ
वहाँ से वहाँ
घर भर में
उछलती-फुदकती-चिहुँकती-कुहुकती
बिटिया अगर है घर में। 

02. जगह-जगह बुलन्दशहर

माता-पिता
नहीं चाहते कैद कर लेना
न बेटियाँ ही चाहती हैं
हो जाना कैद
घर में
लेकिन डराते हैं
रास्ते में आ जाने वाले 
बुलन्दशहर!


03. दुम
(कुछ दुमकटे कुत्तों को देखकर)

दुम तो
दिमाग में होती है
बदन पर नहीं
रेखाचित्र : कमलेश चौरसिया

और वहीं पर
हिलती भी रहती है
मालिकों
और
लजीज
खानों के आगे।

04.
शब्द को 
न शूल बनाओ
न सुई करके
हवा में फेंको
फूट जायेंगी
सभी ओर हैं- मेरी आँखें

  • एम-70, उल्धनपुर, दिगम्बर जैन मन्दिर के पास, नवीन शाहदरा, दिल्ली/मो. 08826499115

Sunday, March 11, 2018

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका            ब्लॉग अंक-03 / 16                      मार्च 2018


रविवार  :  11.03.2018 


‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा। 
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!


शैलेष गुप्त ‘वीर’ 




01.

मैं मदहोश,
स्मृतियों की पंखुड़ियों पर
बिखर गयी-
प्रेम की ओस!

02.

सन्नाटे का अजगर
कमसिन देह
निगल जाता है,
बिकाऊ मीडिया 
बस शोर मचाता है!

03.

सिमटते खेत-खलिहान
उजड़ते पेड़
उड़ते सपने
टूटती उम्मीदों की मेड़!

04.

माँ के कोर
गीले हैं,
बेटे लाल-पीले हैं!

05.

पंख लगे तो उड़ा 
रेखाचित्र : स्व. बी मोहन नेगी  
ठोकर लगी तो मुड़ा
उड़ने-मुड़ने में
कुछ नहीं बचा,
सब कुछ प्रकृति का रचा!

06.

आईने में
खुद को देखा,
लम्बी हो गयी
आत्मविश्वास की रेखा!
  • 24/18, राधा नगर, फतेहपुर-212601, उ.प्र./मो. 09839942005

Sunday, March 4, 2018

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका            ब्लॉग अंक-03 / 15                     मार्च 2018


रविवार  :  04.03.2018 


‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा। 
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!


रजनी साहू





01.

पथ प्रदर्शक बनी
घूंघट में मशालें
सहमे उजाले 
अब तो
साहस से वीरांगनाओं को गले लगा ले

02.

मैं सोयी
अंधकार जाग रहा था
रेखाचित्र : स्व. बी. मोहन नेगी 
मैं जागी तो
अंधकार सो गया

03.

अंधकारों की परम्परा त्यागकर
मीलों मैं अकेला चलता रहा
उजालों की तलाश में
वैराग्य का साम्राज्य मिला और
मैं सिद्धार्थ से बुद्ध हो गया

  • बी-501,कल्पवृक्ष सीएचएस, खण्ड कॉलौनी, सेक्टर 9, कॉर्पोरेद्वान बैंक के पीछे, प्लाट नं. 4, न्यू पानवेल (पश्चिम)-410206, नवी मुंबई (महाराष्ट्र)/मोबाइल: 09892096034