Sunday, March 11, 2018

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका            ब्लॉग अंक-03 / 16                      मार्च 2018


रविवार  :  11.03.2018 


‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा। 
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!


शैलेष गुप्त ‘वीर’ 




01.

मैं मदहोश,
स्मृतियों की पंखुड़ियों पर
बिखर गयी-
प्रेम की ओस!

02.

सन्नाटे का अजगर
कमसिन देह
निगल जाता है,
बिकाऊ मीडिया 
बस शोर मचाता है!

03.

सिमटते खेत-खलिहान
उजड़ते पेड़
उड़ते सपने
टूटती उम्मीदों की मेड़!

04.

माँ के कोर
गीले हैं,
बेटे लाल-पीले हैं!

05.

पंख लगे तो उड़ा 
रेखाचित्र : स्व. बी मोहन नेगी  
ठोकर लगी तो मुड़ा
उड़ने-मुड़ने में
कुछ नहीं बचा,
सब कुछ प्रकृति का रचा!

06.

आईने में
खुद को देखा,
लम्बी हो गयी
आत्मविश्वास की रेखा!
  • 24/18, राधा नगर, फतेहपुर-212601, उ.प्र./मो. 09839942005

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