Sunday, September 30, 2018

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका            ब्लॉग अंक-03 / 45                  सितम्बर 2018

रविवार : 30.09.2018

           ‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
          सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!



भावना कुँअर





01. दर्द

जब दर्द हद से गुजरता है ...
तो लोग कहते हैं ग़ज़ल होती है
वो क्या जाने ...
कि दर्द के दरिया में पड़े...
शब्द के सीने से
निकलने वाली चीत्कार
कितनी असहनीय होती है।

02. एक और दीपक

रोशन होता
एक और दीपक 
इस दीपावली में
हवा का झोका
उड़ा ले गया संग
जाने  क्यों  बेख्याली में।

03. सिलवटें

चेहरे पर पड़ी सिलवटें
आज पूछ ही बैठी
उनसे दोस्ती का सबब
मैं कैसे कह दूँ कि
तुम मेरे 
प्यार की निशानियाँ हो।

04. तोहफ़ा

गुनहगार हैं हम
जो ख़ुद को 
बीमार पड़ने से न रोक पाए...
तभी तो तेरा 
तिरस्कार और नफ़रत
तोहफ़े में ले चुप चले आए।

05. तस्वीर

छायाचित्र : उमेश महादोषी 
तुम्हारे पर्स की तहों में
लिपटी रहती थी यादें बनी
मेरी  नन्ही  निशानियाँ...
आज वहाँ किसी की
तस्वीर नज़र आती है।

06. उड़ान

उड़ान...
थककर चूर हो जाती
पर जरा न बैठ पाती 
लगी रहती नाम सार्थक करने में
बस फिर...
उड़ती ही जाती...

  • सिडनी, आस्ट्रेलिया
  • भारत में : द्वारा श्री सी.बी.शर्मा, आदर्श कॉलोनी, एस.डी.डिग्री कॉलिज के सामने, मुज़फ़्फ़रनगर(उ.प्र.)/ईमेल : bhawnak2002@gmail.com

Sunday, September 23, 2018

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका            ब्लॉग अंक-03 / 44                  सितम्बर 2018

रविवार : 23.09.2018

           ‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
          सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!


ज्योत्स्ना  प्रदीप




01. श्रृंगार 

नागफनी ने 
अपने बदन को 
कैसा सजाया 
न दिल टूटा 
न कोई 
पास आया !

02. ज़िक्र 

गोरी बदलियों को
फ़िक्र है 
आज 
काले बादलों में 
उनका ज़िक्र है!!

03. अश्क़ 

हाँ मुझे रश्क़ 
होता है 
जब तेरी आँखों में 
किसी के 
नाम का एक 
अनबहा 
अश्क़ होता है!

04. सीख 

माँ ने कहा था-
‘‘बेटी 
सब सहना 
और हाँ.... 
‘अच्छे से’ रहना!!’’
रेखाचित्र : कृष्ण कुमार अजनबी 

05. खूबसूरत  मंज़र 

खूबसूरत मंज़र  था 
कल चाँदनी रात!
इक बेल लिपट गई थी 
पौधे से जैसे   
शरीक-ए-हयात!

06. कसौटी 

ये रात की
कैसी कसौटी है?
एक तो बिन चाँद के...
उस पर 
आँसुओं में नहाकर 
लौटी है!

  • मकान-32, गली नं. 09, न्यू गुरुनानक नगर, गुलाब देवी हॉस्पिटल रोड, जालंधर-144013, पंजाब

Sunday, September 16, 2018

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका            ब्लॉग अंक-03 / 43                  सितम्बर 2018

रविवार : 16.09.2018

           ‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
          सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!



केशव शरण




01. कीचड़ बरदाश्त

बेदर्द मौसम की
बेशर्मी नहीं
कीचड़ बरदाश्त है
गली का
गर्मी नहीं

02. हरा सूरज

मैं चलता जाता
जलती धूप में
सड़कों पर
अपना रक्त जलाता
और सोचता
कोई पेड़ आता
लिये घना साया
नहीं तो सूरज
हरा हो जाता

03. सुन्दर चेहरा

सुन्दर 
इतना सुन्दर चेहरा
कि देखकर
प्यार उमड़ने लगता
लेकिन जाने क्यों यह
दिल को झटका देता है
मुखौटा लगा लेता है।

04. बालक

छोटा है या बड़ा
वह अपने पैरों पर खड़ा
कर लेता है परिक्रमा
चारपाई की
जो है उसकी माई की।

05. नदी के किनारे

बहती नदी के किनारे
बैठे मिलेंगे बहुत
ठहरी नदी के किनारे
ठहरता नहीं कोई
वह किसी और दृश्य की ओर बढ़ जाता है
है यह अद्भुत !

06. लतर : 1
रेखाचित्र : बी मोहन नेगी 


चढ़ने ही
जा रही थी लतर
कि मायूस हो गई

काट दिया गया
उसके सहारे को
सूखा पेड़ जानकर

07. लतर : 2

ऊँचे से ऊँचे 
पेड़ के लिए
ऊँचा है टावर
मगर लतर के लिए नहीं
जो बादलों को छूना चाहती है
आगे बढ़कर

  • एस 2/564, सिकरौल, वाराणसी-221002/मो. 09415295137

Sunday, September 9, 2018

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका            ब्लॉग अंक-03 / 42                  सितम्बर 2018

रविवार : 09.09.2018

‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!


अमन चाँदपुरी




01. धूप का इंतजार

तुम्हें धूप दिखे
तो बता देना उसे
मेरे घर का पता
कहना,
बहुत से नहाए हुए कपड़े
सूखने को पड़े हैं
तुम्हारे इंतजार में।

02.

घास के नुकीले बदन पर
पीठ के बल लेटा था मैं
मैंने देखा
फ़लक मेरे ऊपर सोने की 
कोशिश कर रहा था। 

03. किसान

रात में
खेत में
ठंड से
ठंडा पड गया
किसान
लोग उसकी
आँखों में
डूबी फसल
देख रहे हैं

04. समय

समय के पाँव
भारी हैं
उसे तेज चलना
न सिखाओ
करेला नीम चढ़ जायेगा


रेखाचित्र : सिद्धेश्वर 
05. जिन्दगी

जिन्दगी
बहुत कठिन हैं
रोटी बनाने जितनी

06. लंगड़ा

चलते हुए गिरना
मुझे कहाँ भाता है
जो भी देखता है
लँगड़ा कह जाता है।

  • ग्राम व पोस्ट- चाँदपुर प टांडा, जिला- अम्बेडकर नगर-224230, उ.प्र./मो. 09721869421

Sunday, September 2, 2018

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका            ब्लॉग अंक-03 / 41                   सितम्बर 2018

रविवार : 02.09.2018

‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!


सुनीता काम्बोज






01.

तपती रेत पर 
रुकते नहीं कदम
अगर मुझे रोकना है 
तुम बनों शीतल छाया ।

02.

सागर के दर्पण में
देख अपना विस्तार
नभ मुस्कुराया
रात्रि में केवल
चाँद को पाया
भोर में फिर खुद को निहार
हुआ बेकरार
यह कैसा छलावा
फिर भी इस मोह से
निकल न पाया ।

03.

कुल पर कालिख पोतकर
तुम श्यामपट मत बनाओ?
और वासनाओं के चॉक से
मत लिखो 
फिर कोई कहानी

04.

बारीक दरारों को
नजरअंदाज करने से
बन जाती है वह खाई
जिसे भरना
मुश्किल ही नहीं
नामुमकिन होता है।
छायाचित्र : अभिशक्ति गुप्ता 


05.

अनपढ़ माँ
बाँच देती है
मेरी आँखों का
हर आखर
मैं उसकी उलझनें
पढ़ नहीं पाती
फिर भी 
पढ़ी लिखी कहलाती।

  • मकान नंबर-120, टाइप-3, जिला संगरूर, पंजाब / मो. 09464266415