Sunday, December 31, 2023

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका              ब्लॉग अंक-03/313          दिसम्बर  2023

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01. समकालीन क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}

रविवार  : 31.12.2023
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!

उमेश महादोषी



1.

क्या होगा

समय बदलने की प्रतीक्षा से!

होना तो यह चाहिए

जहाँ समय को पहुँचना है

वहाँ

हम पहले से खड़े हों।


2.


एक आभूषण है-

प्रतीक 

तन पर हो 

या मन पर


चमकता है-

यथार्थ

जब धारण करता है।


3.

छायाचित्र : उमेश महादोषी 


दोस्ती

कौवे से हो

या बगुले से

आँख के लेंस का सामना तो

चश्मे के

चटके काँच से ही

होना है।

  • 121, इंद्रापुरम, बी डी ए कॉलोनी, बदायूं रोड, बरेली-243001, उ. प्र./मो. 09458929004

Sunday, December 24, 2023

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका                     ब्लॉग अंक-03/312                  दिसम्बर  2023 

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रविवार  : 24.12.2023
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।

सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है! 



घनश्याम मैथिल




1. मातृभूमि 


अफसोस 

अजीब लगा है रोग,

मातृभूमि को 

मात्र भूमि समझ रहे लोग।


2. जमाने 

छायाचित्र : उमेश महादोषी 


कौन कहता है 

उन्हें चिंता है जमाने की,

चिंता है उन्हें बस 

जमाने में अपने 

पैर जमाने की।


  • जी/एल-४३४ अयोध्या नगर, भोपाल, म. प्र./मो. 09589251250 

Sunday, December 17, 2023

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका                     ब्लॉग अंक-03/311                  दिसम्बर  2023 

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रविवार  : 17.12.2023
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।

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कंचन अपराजिता



01.


कागज के फूलों से,

कब खुश्बू आई है।

तेरे रिश्ते से

जाने क्यों,

फिर 

उम्मीद लिए बैठी हूँ...


02.


जीवन संघर्ष का

क्या कहूँ

आजकल

हर साँस ही ग़म देती है।


03. 

रेखाचित्र : कमलेश चौरसिया 

मुझसे लिपटकर वो

देर तक रोया था।

अपना वजूद उसने

मेरे आगोश में खोया था।


  • 39/1ए सिन्दूर ग्रीन पार्क, जयचन्द्रन नगर, पालीकरनाय, चेन्नई-600100, त.नाडु

(39/1, Sindur green park, Jayachandran Nagar, Pallikarnai, Chennai-600100, T. Nadu)


Sunday, December 10, 2023

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका                     ब्लॉग अंक-03/310                  नवम्बर  2023 

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रविवार  : 10.12.2023
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।

सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है! 



मिथिलेश दीक्षित




01.


मैं नहीं

नीरों भरी बदली,

मचलती धार में भी

मैं नहीं मचली,

समन्दर को समेटा

स्वयं सीपी में,

बनी जो बूँद,

उसने ज़िन्दगी की

धार बदली।


02.


पत्ते-पत्ते बोल रहे 

भगवान से

यह दर्शन

विरले ही पाते

रेखाचित्र : कमलेश चौरसिया 
ज्ञान से!


03. 


चेतना जगाती

नवल सृजन,

यदि होता

उसमें स्पंदन!


  • 91,सी, संजयपुरम लखनऊ-226016 (उ.प्र.) 

Sunday, December 3, 2023

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका                     ब्लॉग अंक-03/309                  दिसम्बर 2023 

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रविवार  : 03.12.2023
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।

सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!  


अनीता ललित




01.


अनजाने में ही सही...

तुमने ही खड़े किए बाँध...

अना के...

वरना... मेरी फितरत तो

पानी-सी थी...!


02.


बड़ी-बड़ी खुशियाँ ढह जाती हैं...

छोटी-छोटी नज़रअंदाजी से कभी...

खिली बहार में बिखर जाते हैं...

यूँ ही रिश्ते...

सूखे पत्तों की तरह कभी-कभी...

चित्र : प्रीति अग्रवाल 


03.


तेरी हसरत की बारिश में

कुछ यूँ भीगे हम...

सील गई मेरी हस्ती...

पर सूखा रह गया मन...

  • 1/16, विवेक खंड, गोमतीनगर, लखनऊ-226010, उ.प्र.