Sunday, April 26, 2020

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद


समकालीन क्षणिका            ब्लॉग अंक-03 /121                                 अप्रैल 2020


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01. समकालीन क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श }
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श }

रविवार : 26.04.2020
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!


महावीर रवांल्टा






01.

जिन्दगी में 
ख्वाब देखकर मैंने
विष घोला
जिसे
मुझे ही पीना था।
छायाचित्र :
उमेश महादोषी
 

02.

मैं उसके चेहरे को 
अपने से मिलाने लगा
पर वहाँ तो 
आँसू ही आँसू थे।

03.

गुमनाम है जिन्दगी
उसी को
अँधेरा कहूँगा
सरकती आत्मा को खोजूँ
उसी को
सवेरा कहूँगा।

  • ‘संभावना‘, महरगाँव,  पत्रालय : मोल्टाड़ी, पुरोला, उत्तरकाशी-249185, उ.खंड/मो. 09411834007

Sunday, April 19, 2020

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद


समकालीन क्षणिका            ब्लॉग अंक-03 /120                                 अप्रैल 2020


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रविवार : 19.04.2020
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!


वीणा शर्मा वशिष्ठ




01. हरे मन

हरे मन में
चुपके से पतझड़ का आना
मैं, सावन को टोहती रही
पर
तुम नहीं आये।

02. निमंत्रण पत्र

निमंत्रण पत्र
सोने, चाँदी से गढ़े
मन करता है
झूठे दिखावे को बेच
भूखे उदर की
चाँदी कर दूँ।

03. पीला पत्ता

पीला काँपता पत्ता
अब, हरा नहीं होगा
सड़ जाने दो
रेखाचित्र : संध्या तिवारी 

मिट्टी में खाद बन जाने दो
बुजुर्ग, सोचते-सोचते
श्वासें छोड़ रहा था।

04. संवेदनाएँ

सुना था,
सम्वेदनाएँ मर गई हैं
नही...नही...
सामने वह जो रक्त रंजित पड़़ा है
दौड़ रहा हूँ बचाने के लिए
गुहार लगा रहा हूँ
मेरी संवेदनाएँ जिंदा हैं अभी
क्योकि वो मेरा लाल रक्त है...

  • 597, सेक्टर-8, पंचकूला-134109, हरियाणा/मो. 07986249984

Sunday, April 12, 2020

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद


समकालीन क्षणिका            ब्लॉग अंक-03 /119                                अप्रैल 2020


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रविवार : 12.04.2020
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!

जेन्नी शबनम







01. काश! कोई ज़ंजीर होती

वीरान राहों पर
तन्हा, ख़ामोश चल रही हूँ
थक गई हूँ, टूट गई हूँ
न जाने कैसी राह है
ख़त्म नहीं होती,
समय की कैसी बेबसी है
एक पल को थम नहीं पाती,
काश! कोई ज़ंजीर होती
रेखाचित्र : कमलेश चौरसिया 
वक्त और ज़िन्दगी के पाँव जकड़ देती!

02. बुरी नज़र 

कुछ ख़ला-सी रह गई ज़िन्दगी में,
जाने किसकी बददुआ लग गई मुझको!
कहते थे सभी कि ख़ुद को बचा रखूँ 
बुरी नज़र से,
हमने तो रातों की स्याही में 
ख़ुद को छुपा रखा था!

  • द्वारा राजेश कुमार श्रीवास्तव, द्वितीय तल-5/7, सर्वप्रिय विहार, नई दिल्ली-110016

Sunday, April 5, 2020

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद


समकालीन क्षणिका            ब्लॉग अंक-03 /118                                अप्रैल 2020


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रविवार : 05.04.2020
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
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शैलेष गुप्त ‘वीर’







01.

समय ने 
बाँसुरी बजाई
झनझना उठे
यादों के अनकहे स्वर!

02.


मुस्कुरा उठे गीत 
लौट आया सावन
गहन नीरवता को चीर गयी
रेखाचित्र : संध्या तिवारी 

उसकी वर्षों पुरानी हँसी!

03.


कब तक कहोगी
मुझे अपना आराध्य
और करोगी मेरी आराधना
मैं जीना चाहता हूँ
कुछ पल प्रेम के
मधुर
जीवन्त!

  • 24/18, राधा नगर, फतेहपुर-212601, उ.प्र./मो. 09839942005