समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03 /120 अप्रैल 2020
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01. समकालीन क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श }
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रविवार : 19.04.2020
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
वीणा शर्मा वशिष्ठ
01. हरे मन
हरे मन में
चुपके से पतझड़ का आना
मैं, सावन को टोहती रही
पर
तुम नहीं आये।
02. निमंत्रण पत्र
निमंत्रण पत्र
सोने, चाँदी से गढ़े
मन करता है
झूठे दिखावे को बेच
भूखे उदर की
चाँदी कर दूँ।
03. पीला पत्ता
पीला काँपता पत्ता
अब, हरा नहीं होगा
सड़ जाने दो
रेखाचित्र : संध्या तिवारी |
मिट्टी में खाद बन जाने दो
बुजुर्ग, सोचते-सोचते
श्वासें छोड़ रहा था।
04. संवेदनाएँ
सुना था,
सम्वेदनाएँ मर गई हैं
नही...नही...
सामने वह जो रक्त रंजित पड़़ा है
दौड़ रहा हूँ बचाने के लिए
गुहार लगा रहा हूँ
मेरी संवेदनाएँ जिंदा हैं अभी
क्योकि वो मेरा लाल रक्त है...
- 597, सेक्टर-8, पंचकूला-134109, हरियाणा/मो. 07986249984
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