Sunday, September 24, 2017

खण्ड-2 के क्षणिकाकार-33

समकालीन क्षणिका             खण्ड/अंक-02                   अप्रैल 2017



रविवार  :  24.09.2017

क्षणिका की लघु पत्रिका ‘समकालीन क्षणिका’ के अप्रैल 2017 में प्रकाशित खण्ड-2 में शामिल सुश्री अंजु दुआ जैमिनी जी की क्षणिका। 


अंजु दुआ जैमिनी 





01. ख्वामखाह
लिहाफ ओढ़े
सोती रही सभ्यता
खुले-आम शोर
करती रही बर्बरता,
ख्वामखाह बेड़ियों में 
जकड़ी गयी खता
हुस्न औ इश्क का 
जाने कौन पता ?

02. बीज 
स्त्री के साथ/सम्बन्ध को 
पुरुष शिद्दत से/सींच नहीं पाता
रेखाचित्र :  कमलेश चौरसिया 
तब स्त्री के भीतर/फूटता बीज 
और पेड़ नीम 
अनचाहे उग आता

03. चटाचट
मुट्ठी में तेरी
मैं सोनचिरैया
उड़ने न देता 
प्रेम जताता,
कभी-कभार/खोलता मुट्ठी
भींच लेता फिर चटाचट
इस कदर है सताता


  • 839, सेक्टर-21सी, फरीदाबाद, हरियाणा/ मो. 09810236253

खण्ड-2 के क्षणिकाकार-32

समकालीन क्षणिका             खण्ड/अंक-02                   अप्रैल 2017



रविवार  :  24.09.2017

क्षणिका की लघु पत्रिका ‘समकालीन क्षणिका’ के अप्रैल 2017 में प्रकाशित खण्ड-2 में शामिल सुश्री ज्योत्स्ना प्रदीप जी की क्षणिका। 


ज्योत्स्ना प्रदीप




01. बदलाव
वो दरख्त/धीरे धीरे
ठूँठ में बदल गया
शायद/उसे भी कोई
छल गया!!

02. सौभाग्य
पलाश!
ये तेरा सौभाग्य
जो योगी सा तू
...वन में है रहता,
नगर में होता
तो जाने...
क्या-क्या सहता!!!

03. दर्द
मन ने जब
तन्हा सफ़र/समेटा था
आँसुओं में भीगे
रात से काले गेसू
हैरान थे...
हर रात साथ उसके जब
दर्द लेटा था।

04.
उस बच्ची की/मासूम समझ
रेखाचित्र : रमेश गौतम 

जाने क्या भाँप गई
किसी पेड़ की पत्ती के
स्पर्श से भी/वो काँप गई!!

05. इश्क़
वो नदी
कितनी मासूम...
प्यारी!
दरिया के इश्क़ में/डूबकर
हो गई खारी!!

  •  मकान-32, गली नं. 09, न्यू गुरुनानक नगर, गुलाब देवी हॉस्पिटल रोड, जालंधर-144013, पंजाब

Sunday, September 17, 2017

खण्ड-2 के क्षणिकाकार-31

समकालीन क्षणिका             खण्ड/अंक-02                   अप्रैल 2017



रविवार  :  17.09.2017

क्षणिका की लघु पत्रिका ‘समकालीन क्षणिका’ के अप्रैल 2017 में प्रकाशित खण्ड-2 में शामिल श्री ध्रुव तांती जी की क्षणिका। 



ध्रुव तांती







आधुनिक प्रेयसी

मैं नहीं जानता 
कि तुम/झूठ से कितनी दूर हो
सत्य के कितना करीब हो
है यह मेरी अवधारणा
झूठ-सत्य के बीच खड़ी हो!


  • ग्राम व पोस्ट: मैना ग्राम वाया महिषी, जिला सहरसा-852216, बिहार/मो. 09431463466

खण्ड-2 के क्षणिकाकार-30

समकालीन क्षणिका             खण्ड/अंक-02                   अप्रैल 2017



रविवार  :  17.09.2017

क्षणिका की लघु पत्रिका ‘समकालीन क्षणिका’ के अप्रैल 2017 में प्रकाशित खण्ड-2 में शामिल डॉ. जगदीश पन्त ‘कुमुद’ जी की क्षणिका। 

जगदीश पन्त ‘कुमुद’





01.
शहरों में 
मकान सटते गए 
रिश्ते हटते गये 

02.
क़यामत की रात
पहाड़ सा दिन 
तुम बिन!

03.
वक्त उड़ चला
पंख फैलाए 
अपाहिज स्मृतियों को 
कौन ले जाए, कहाँ ले जाए 
रेखाचित्र : डॉ. सुरेंद्र वर्मा 

04.
सत्य तो है बस 
मरघट की शान्ति 
शेष सब भ्रान्ति 

05.
आम हो ना!
कच्चापन रहा तो 
चटनी बनेगी 
पक गए तो 
तो चूस लिए जाओगे 
कुछ ‘ख़ास’ के द्वारा 


  •  प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र चकरपुर, खटीमा-262308 (उधमसिंह नगर), उ.खंड/मो. 09412906187

Sunday, September 10, 2017

खण्ड-2 के क्षणिकाकार-29

समकालीन क्षणिका             खण्ड/अंक-02                   अप्रैल 2017



रविवार  :  10.09.2017

क्षणिका की लघु पत्रिका ‘समकालीन क्षणिका’ के अप्रैल 2017 में प्रकाशित खण्ड-2 में शामिल सुश्री देवी नागरानी जी की क्षणिका। 


देवी नागरानी





01. प्रदर्शन
दीवारों की सिलवटें
दरारों से रिसता पानी
तेज हवा से उड़ते परदे
बाहर बारिश
अंदर भी है पानी
पर, दाग कुछ ऐसे
जो न धो पाये
आँख का पानी...
रेखाचित्र : बी मोहन नेगी 

02. डर
आँखें बंद हैं मेरी
तीरगी से लिपटा हुआ
ये मन,/गहरे, बहुत गहरे
धँसता जा रहा है
पर, 
जब बेबसी में ख़ुद को छोड़ दिया
तो लगा
मैं रौशनी से घिर गयी हूँ
अब मुझे डर किस बात का!

  •  9-डी, कार्नर व्यू सोसाइटी, 15/33 रोड, बांद्रा, मुम्बई-400050/मो. 09987938358

खण्ड-2 के क्षणिकाकार-28

समकालीन क्षणिका             खण्ड/अंक-02                   अप्रैल 2017



रविवार  :  10.09.2017

क्षणिका की लघु पत्रिका ‘समकालीन क्षणिका’ के अप्रैल 2017 में प्रकाशित खण्ड-2 में शामिल सुश्री  शशि पाधा जी की क्षणिकाएँ। 


शशि पाधा 





01.
आज पत्ते
कुछ पीले पड़ गए 
कल सुर्ख हो जाएँगे 
हवा को पसंद नहीं उनका 
रंग बदलना 
उड़ा ले जाएगी...

02.
पत्ती से गिरी थी ओस
बहुत नाज़ था उसे
हीरा बनने का
क्षण भंगुरता से
उसकी पहचान जो ना थी...

03.
मेरे और तुम्हारे बीच का रिश्ता
रेखाचित्र : रमेश गौतम 

कभी पनपा नहीं 
धूप बारिश हवा आसमान 
सब तो एक से थे 
शायद मिट्टी अलग-अलग थी...

04.
मैं कुम्हार नहीं जो
माटी को मनचाहा रूप दूँ 
मेरे साथ नियति और प्रारब्ध जैसी 
अदृश्य शक्तियाँ भी हैं 
और अधिकतर 
फैसला उनका ही होता है।

  • 10804, Sunset hills Rd, Reston VA, US 20190 /ई मेल : shashipadha@gmail.com

Sunday, September 3, 2017

खण्ड-2 के क्षणिकाकार-27

समकालीन क्षणिका             खण्ड/अंक-02                   अप्रैल 2017



रविवार  :  03.09.2017

क्षणिका की लघु पत्रिका ‘समकालीन क्षणिका’ के अप्रैल 2017 में प्रकाशित खण्ड-2 में शामिल श्री मुकुट सक्सेना जी की क्षणिकाएँ। 


मुकुट सक्सेना





01.
निर्जन में नील झील
झील में उतरा चाँद
चाँद-/बिना पदचाप
हिलोर ही हिलोर
और वहाँ कोई नहीं।

02.
अन्तस में
कोई एक दर्प/बिखरा 
किर्च-किर्च/बेआवाज़
और वहाँ कोई नहीं।

03.
बाँस का वन
पवन चक्राकार
चतुर्दिक आग ही आग
आग की लपटों में/खरगोश
और वहाँ कोई नहीं।

04.
रेत पर 
बनते-मिटते चिन्ह
मुट्ठी से फिसलता
काल
और वहाँ कोई नहीं।
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05.
चिनार और वर्फ
वर्फ और चिनार
बीच में बन्दूक
और वहाँ कोई नहीं।

06.
पाँडव और कौरव
शकुनि 
और चौसर की बिसात
अकेली द्रोपदी
और वहाँ कोई नहीं।


  •  5-ग 17, जवाहर नगर, जयपुर-302004, राजस्थान/मो. 09828089417

खण्ड-2 के क्षणिकाकार-26

समकालीन क्षणिका             खण्ड/अंक-02                   अप्रैल 2017



रविवार  :  03.09.2017

क्षणिका की लघु पत्रिका ‘समकालीन क्षणिका’ के अप्रैल 2017 में प्रकाशित खण्ड-2 में शामिल डॉ. सुधेश जी की क्षणिकाएँ। 


सुधेश




01. शब्द  
कुछ शब्द
जैसे प्यार करुणा क्षमा 
शब्द नहीं 
हैं मन्त्र 
मन्त्र नहीं 
हैं ऋचाएँ 
जिन्हें आँखें बोलती हैं।

02. एक जिज्ञासा  
मैं अपने दुःख से पीड़ित 
तुम अपने सुख में आनन्दित
रेखाचित्र : डॉ. सुरेन्द्र वर्मा
मेरा दुःख बिन बुलाये अतिथि सा 
दो चार दिनों बाद चला जाएगा 
एक बात पूछूँ 
तुम्हारा सुख कब तक रुकेगा।

03. बौना 
बौने को मिला सब कुछ 
उच्च पद पदवी 
लेकिन बैसाखी चढ़ 
एवरेस्ट पर भी 
बौना होगा बौना ही।


  •  314, सरल अपार्टमैन्ट्स, द्वारका, सैक्टर-10, दिल्ली-110075/मो. 09350974120