समकालीन क्षणिका खण्ड/अंक-02 अप्रैल 2017
रविवार : 24.09.2017
अंजु दुआ जैमिनी
01. ख्वामखाह
लिहाफ ओढ़े
सोती रही सभ्यता
खुले-आम शोर
करती रही बर्बरता,
ख्वामखाह बेड़ियों में
जकड़ी गयी खता
हुस्न औ इश्क का
जाने कौन पता ?
02. बीज
स्त्री के साथ/सम्बन्ध को
पुरुष शिद्दत से/सींच नहीं पाता
रेखाचित्र : कमलेश चौरसिया |
और पेड़ नीम
अनचाहे उग आता
03. चटाचट
मुट्ठी में तेरी
मैं सोनचिरैया
उड़ने न देता
प्रेम जताता,
कभी-कभार/खोलता मुट्ठी
भींच लेता फिर चटाचट
इस कदर है सताता
- 839, सेक्टर-21सी, फरीदाबाद, हरियाणा/ मो. 09810236253
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