समकालीन क्षणिका खण्ड/अंक-02 अप्रैल 2017
रविवार : 24.09.2017
ज्योत्स्ना प्रदीप
01. बदलाव
वो दरख्त/धीरे धीरे
ठूँठ में बदल गया
शायद/उसे भी कोई
छल गया!!
02. सौभाग्य
पलाश!
ये तेरा सौभाग्य
जो योगी सा तू
...वन में है रहता,
नगर में होता
तो जाने...
क्या-क्या सहता!!!
03. दर्द
मन ने जब
तन्हा सफ़र/समेटा था
आँसुओं में भीगे
रात से काले गेसू
हैरान थे...
हर रात साथ उसके जब
दर्द लेटा था।
04.
उस बच्ची की/मासूम समझ
![]() |
रेखाचित्र : रमेश गौतम |
जाने क्या भाँप गई
किसी पेड़ की पत्ती के
स्पर्श से भी/वो काँप गई!!
05. इश्क़
वो नदी
कितनी मासूम...
प्यारी!
दरिया के इश्क़ में/डूबकर
हो गई खारी!!
- मकान-32, गली नं. 09, न्यू गुरुनानक नगर, गुलाब देवी हॉस्पिटल रोड, जालंधर-144013, पंजाब
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