समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03 / 43 सितम्बर 2018
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
केशव शरण
01. कीचड़ बरदाश्त
बेदर्द मौसम की
बेशर्मी नहीं
कीचड़ बरदाश्त है
गली का
गर्मी नहीं
02. हरा सूरज
मैं चलता जाता
जलती धूप में
सड़कों पर
अपना रक्त जलाता
और सोचता
कोई पेड़ आता
लिये घना साया
नहीं तो सूरज
हरा हो जाता
03. सुन्दर चेहरा
सुन्दर
इतना सुन्दर चेहरा
कि देखकर
प्यार उमड़ने लगता
लेकिन जाने क्यों यह
दिल को झटका देता है
मुखौटा लगा लेता है।
04. बालक
छोटा है या बड़ा
वह अपने पैरों पर खड़ा
कर लेता है परिक्रमा
चारपाई की
जो है उसकी माई की।
05. नदी के किनारे
बहती नदी के किनारे
बैठे मिलेंगे बहुत
ठहरी नदी के किनारे
ठहरता नहीं कोई
वह किसी और दृश्य की ओर बढ़ जाता है
है यह अद्भुत !
06. लतर : 1
रेखाचित्र : बी मोहन नेगी |
चढ़ने ही
जा रही थी लतर
कि मायूस हो गई
काट दिया गया
उसके सहारे को
सूखा पेड़ जानकर
07. लतर : 2
ऊँचे से ऊँचे
पेड़ के लिए
ऊँचा है टावर
मगर लतर के लिए नहीं
जो बादलों को छूना चाहती है
आगे बढ़कर
- एस 2/564, सिकरौल, वाराणसी-221002/मो. 09415295137
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