समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03 / 44 सितम्बर 2018
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
ज्योत्स्ना प्रदीप
01. श्रृंगार
नागफनी ने
अपने बदन को
कैसा सजाया
न दिल टूटा
न कोई
पास आया !
02. ज़िक्र
गोरी बदलियों को
फ़िक्र है
आज
काले बादलों में
उनका ज़िक्र है!!
03. अश्क़
हाँ मुझे रश्क़
होता है
जब तेरी आँखों में
किसी के
नाम का एक
अनबहा
अश्क़ होता है!
04. सीख
माँ ने कहा था-
‘‘बेटी
सब सहना
और हाँ....
‘अच्छे से’ रहना!!’’
रेखाचित्र : कृष्ण कुमार अजनबी |
05. खूबसूरत मंज़र
खूबसूरत मंज़र था
कल चाँदनी रात!
इक बेल लिपट गई थी
पौधे से जैसे
शरीक-ए-हयात!
06. कसौटी
ये रात की
कैसी कसौटी है?
एक तो बिन चाँद के...
उस पर
आँसुओं में नहाकर
लौटी है!
- मकान-32, गली नं. 09, न्यू गुरुनानक नगर, गुलाब देवी हॉस्पिटल रोड, जालंधर-144013, पंजाब
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