समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03 /184 जुलाई 2021
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01. समकालीन क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श}
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}
रविवार : 11.07.2021
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}
रविवार : 11.07.2021
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
अनीता ललित
जीवन के गहरे अँधेरों को...
ना मिटा सके जब... चन्दा-तारे भी...
बनकर मशाल खुद जली मैं...
और राहें अपनी ढूँढीं मैनें... अक्सर...
02.
कई बार... अपने आँगन में...
जब दीया जलाया है मैनें,
संग उसके...
खुद को जलाया है मैनें...
और खुद ही...
रेखाचित्र : कमलेश चौरसिया |
03.
तमन्नाओं के सहरा में भटकते हुए...ऐसा भी हुआ कई बार...
थककर जब भी बैठे हम...
खुद आप ही...
गंगा-जमुना बने हम।
- 1/16, विवेक खंड, गोमतीनगर, लखनऊ-226010, उ.प्र.
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