समकालीन क्षणिका खण्ड/अंक-02 अप्रैल 2017
रविवार : 11.06.2017
महाश्वेता चतुर्वेदी
01. हुनर
बेरोज़गारी के शाप से संत्रस्त
मैं रोया नहीं
निराशा का बीज बोया नहीं
हुनर की चाबी पहचानकर
खोल डाला प्रतिभा का द्वार
अब हाथ जोड़कर खड़े हैं
ढेरों व्यापार!
02. आहुति
सत्कर्मों की आहुति ने
छायाचित्र : उमेश महादोषी |
03. सृजन-स्वप्न
ऊबड़ खावड़, टेढ़े मेढ़े रास्ते,
गड्ढे-कुंवे, दलदल,
उतार-चढ़ाव
पंकिल-जल,
पग-पग पर विषमतायें
यही छिपाये हैं
नूतन सृजन-स्वप्न!
- 24, आँचल कॉलौनी, श्यामगंज, बरेली-243005 (उ.प्र.)/मो. 09719687166
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