समकालीन क्षणिका खण्ड/अंक-02 अप्रैल 2017
रविवार : 11.06.2017
योगेंद्रनाथ शर्मा ‘अरुण’
01. तब और अब
तब फक्कड़ मस्त कबीर
रच कर साखियाँ
खूब फटकारता था दोनोँ को
और दोनों जुड़ जाते थे,
अब नेता जी आकर
देते हैं जहरीला भाषण
उकसाते हैं दोनों को
और दोनों भिड़ जाते हैं!
02. वो क्षण
‘‘जाने कौन सा क्षण था
वह...
जब छुआ था तुमने
और/गुनगुना उठा था
मैं अनायास ही।’’
छायाचित्र : उमेश महादोषी |
03. ज़िन्दगी
फूल बहुत प्यारे लगते हैं
इनके रंगों में झलकती है ज़िन्दगी
ये बिखेरते हैं खुशियाँ हर पल
मुरझाने से पहले
और मुरझाने पर भी
कभी नहीं होते निराश!
शायद यही है असली ज़िन्दगी!
04. सच्ची पूजा
रोज़ वे जाते हैं मंदिर
उधर वाले भी पढ़ते हैं नमाज़
और चर्च में भी रहती है खूब
चहल-पहल,
लेकिन एक कुटिया में बैठा
फकीर
करता रहता है किसी कोढ़ी के
रिसते घावों की मरहम-पट्टी!
सोचता हूँ इन सबमें
किसे मिलेगा ईश्वर, खुदा, गॉड?
- 74/3, न्यू नेहरु नगर, रुड़की-247667, जिला हरिद्वार, उ. खण्ड/मो. 09412070351
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