समकालीन क्षणिका खण्ड/अंक-02 अप्रैल 2017
रविवार : 02.07.2017
नारायण सिंह निर्दोष
01. ख्वाब
आँख में
कुछ पड़ गया है
या फिर
वो एक पुराना/ख्वाब है
जो/आँख में पड़े-पड़े
सड़ गया है।
02.
मैं देखता हूँ
मासूम बकरियों के झुण्ड
उनकी/देह सहलाते हुए चीते
और थर-थर काँपता जंगल!
रेखाचित्र : विज्ञान व्रत |
03.
ज़िन्दगी
मुखप्रष्ठ पर/छपी तुम
बहुत खूबसूरत हो
किन्तु, देखूँगा तुम्हें/जी भर
तमाम... बदसूरत... तस्वीरें
देख चुकने के उपरांत
04.
पाँवों में
फटी चप्पलों की कीमत
जमा ($)/जिस्म पर टंगे
चिथड़ों की कीमत
और कुल पर
शत-प्रतिशत छूट
बराबर (=)
गरीब की कुल कीमत
- सी-21, लैह (स्म्प्।भ्) अपार्टमेन्ट्स, वसुन्धरा एन्क्लेव, दिल्ली-110096/मो. 09810131230
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