समकालीन क्षणिका खण्ड/अंक-02 अप्रैल 2017
रविवार : 30.07.2017
शैलेष गुप्त ‘वीर’
01.
उसने जब-जब
तुममें
संभावनाएँ तलाशीं,
तुम दैत्य हो गये!
02.
सपनों ने
जाल बुने,
गौरेया ने
अबके
दाने नहीं चुगे!
03.
गाँव से नगर
नगर से महानगर हो गये,
आदमी थे
जानवर हो गये!
04.
छुटकी/फिर से
रेखाचित्र : बी.मोहन नेगी |
मायके आयी
माँ की गोद में
सो गयी!
05.
मत सोओ,
लड़ो इस अँधेरी-रात से
सूरज-चाँद न सही
जुगनू हो जाओ!
06.
बड़े जतन से
सपने बुने,
चिड़िया चुग गयी!
- 24/18, राधा नगर, फतेहपुर-212601, उ.प्र./मो. 09839942005
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