समकालीन क्षणिका खण्ड/अंक-02 अप्रैल 2017
रविवार : 09.07.2017
सतीश राठी
01.
जन आक्रोश
होता है पानी के समान
उबलता है लेकिन
उफनता नहीं!
02. उपेक्षा
कल वह पधारेंगे
सूरज मत उगना
उपेक्षा मिलेगी
03. मन
पतझर में झर गये
रेखाचित्र : बी. मोहन नेगी |
पीले पत्ते-सा
पीला पड़ गया है मन
वक्त की जोंक ने
खून चूस लिया है उसका
04. धूप
धूप अब
मौसम देखकर नहीं बदलती
अपना तीखापन
पढ़ने लगी है वह
आदमियों के चेहरे
पहचानने लगी है-
चुभना है
किन जिस्मों पर उसे
- आर-451, महालक्ष्मी नगर, निकट बाम्बे हॉस्पीटल, इन्दौर-452010, म.प्र./मो. 09425067204
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