समकालीन क्षणिका खण्ड/अंक-02 अप्रैल 2017
रविवार : 16.07.2017
शोभा रस्तोगी
01.
आज फिर
कोख कोई
क़त्ल हुई होगी
पत्ती
शाख से हरी
गिरी है एक।
02.
कागज़ पहने कुछ अल्फाज़...
छायाचित्र : रितेश गुप्ता |
पढ़ लेना इश्क का
चश्मा बन।
03.
मेरे दिल का दर्द
तुझसे बयां हो गया
मेरा मौन सब कह गया
टपकती रही व्यथा मेरी
बन लौ
तू मोम-सा पिघलता रहा।
04. उम्मीद
रख दी उसने चुपचाप
मेरे तकिए नीचे उम्मीद
जो जगी मैं
आज तक जगी हूँ
- आर.जेड.डी-208-बी, डी.डी.ए. पार्क रोड, राजनगर-2, पालम कालोनी, नई दिल्ली-77/मो. 9650267277
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