समकालीन क्षणिका खण्ड/अंक-02 अप्रैल 2017
रविवार : 15.07.2017
लालित्य ललित
01.
तुम्हारे आने से
या
ना
आने से
कभी भी फरक नहीं पड़ा
यह दस्तक तो
कब की लग गई
धमक अभी बाकी है
02.
तुम्हें
महसूस करना
मेरी मजबूरी नहीं
मेरी रूहानी आवाज है
छायाचित्र : बलराम अग्रवाल |
सूफियाना गाने को मन करता है
03.
रोने का अर्थ
यह बिल्कुल नहीं कि
वह तुम्हारे प्रेम में
पागल है
कंकर गिर गया
इसलिए बेचैन है...
- सहा. संपा. (हिन्दी), नेश. बुक ट्रस्ट., नेहरू भवन, इन्स्टी. एरिया फेस-2, वसंत कुज, दिल्ली-70
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