समकालीन क्षणिका खण्ड/अंक-02 अप्रैल 2017
रविवार : 02.07.2017
मिथिलेश दीक्षित
01.
जहाँ भी
देखी व्यथा है,
मेरे शब्दों ने/उतारी
वहाँ की
पूरी कथा है।
02.
बदल गये हैं अर्थ
पहुँचते
शब्दों तक ही शब्द
लक्ष्य तक
जाने में असमर्थ!
03.
आयी नयी सदी
रेखाचित्र : रमेश गौतम |
जाने कहाँ-कहाँ से
बहने/हवा लगी।
04.
एक अकेला
नन्हा-सा/अस्तित्व
समय की/तीव्र धार से
लड़ता-लड़ता
पार लगा है।
05.
सारा जंगल/एक होकर
क्रोध से जलने लगा
एक तिनके ने
हवा का रुख
बदलने को
बग़ावत/की है शायद!
- जी-91, सी, संजयगान्धीपुरम, लखनऊ-226016/मो. 09412549904
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