समकालीन क्षणिका खण्ड/अंक-02 अप्रैल 2017
रविवार : 06.08.2017
सिद्धेश्वर
01. जिन्दा तस्वीर
मर्दानगी की हद हो गई!
हजार फीट गहरी खाई में
गिरने का भय था
उसके चेहरे पर
और तुम्हारे चेहरे पर
खुशियाँ थीं-
एक जानदार फोटो खींचने की!
02. तालाब
नहीं मिल सकी
रेखाचित्र : सिद्धेश्वर |
बहती हुई नदी!
सड़ती रही/बंद तालाब में!
चाँद को छू लिया
मगर ख्वाब में!
03. कर्मभूमि
उत्साह और हर्ष
नहीं जाग उठेगा
पश्चाताप करने से
उम्मीदों का बीज रोपना होगा
वर्तमान की कर्मभूमि पर!
- अवसर प्रकाशन, पो. बा. नं. 205, करबिगहिया, पटना-800001, बिहार/मो. 09234760365
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