समकालीन क्षणिका खण्ड/अंक-02 अप्रैल 2017
रविवार : 20.08.2017
पुष्पा मेहरा
01.
आया मधुमास
भर आई अमराई
जाने क्यों
क्यारियाँ ख़ामोश रहीं!!
02.
एक ने कहा/शब्द मौन हैं
दूसरे ने कहा
शब्द तीर हैं - पत्थर भी
तीसरे ने कहा
शब्द तो आईना हैं।
03.
दीप ही दीप जल रहे हैं
पर अँधेरा भी तो
सेंध लगाने में माहिर है।
छायाचित्र : उमेश महादोषी |
04.
जीवंत जड़
माटी की गोद में
धूप का स्पर्श पा
लहलहा उठी!!
05.
हँसता है बच्चा जब
पहला डग भरता है
रोता है बच्चा जब
परछाईं को पकड़ नहीं पाता
हाथ बढ़ा कर ही
रह जाता है!!
- बी-201, सूरजमल विहार, दिल्ली-92/फ़ोन 011-22166598
No comments:
Post a Comment