समकालीन क्षणिका खण्ड/अंक-02 अप्रैल 2017
रविवार : 27.08.2017
डॉ. महाश्वेता चतुर्वेदी
क्षणिका चिन्तन प्रधान काव्य विधा है
क्षणिका 20वीं सदी की महतीय उपलब्धि है। क्षण तथा कण, दोनों ही महत्वपूर्ण हैं, अतः नीतिवचनों में कहा गया है- ‘‘क्षण त्यागे कुतोविद्या कण त्यागे कुतो धनम्’’ - इन्हीं क्षणों में ज्ञानार्जन तथा कणों के संचय से धनसंचय होता है। साहित्य में क्षणिका का अर्थ है क्षणिकसारभूत कहन, जो सीधे हृदय को प्रभावित कर सके। सन् 1938 में सुतित्रानन्दन पंत द्वारा संपादित ‘‘रूपाभ’’ के प्रकाशन से आरम्भ ‘नई कविता’ से जुड़े प्रायः सभी समर्थ साहित्य-साधकों ने क्षणिकाओं का सृजन किया।
समास शैली में लिखी गई क्षणिकायें गागर में सागर भरने की सामर्थ रखती हैं। अल्पशब्दों में गहन भावों की अभिव्यक्ति क्षणिका का प्राण है। शाब्दिक सघनता का सीधा सम्बन्ध अनुभूति से है। क्षणिका की भूयसी विशिष्टता है बिम्बों और प्रतीकों के प्रयोग से उसे विलक्षण रूप प्रदान करना। क्षणिका के माध्यम से कवि अपने अभिप्रेत को यदि सीधे पाठक के हृदय तक पहुँचाये तो उसकी प्रतिभा का चरमोत्कर्ष है।
क्षणिका चिन्तन प्रधान एवं प्रभावशालिनी काव्य विधा है, जिसे सपाटबयानी से बचाना चाहिए। अभिधाप्रधान काव्य अधमकोटि का है, ध्वनिप्रधान तथा लक्षणा से सम्पन्न काव्य श्रेष्ठ काव्य के रूप में स्वीकृत है। क्षणिका को उत्तम कोटि का बनाने हेतु उसे ध्वनिप्रधान बनाना अपेक्षित है किन्तु अभिव्यक्ति की दुरूहता से बचाना भी अपेक्षित है। यदि उसका शीर्षक रोचक होगा तो पाठक उसे सहजता से समझ सकेगा। क्षणिका भले ही काव्य नहीं, किन्तु काव्य जैसी ही रसानुभूति प्रदान कर, न केवल पाठक को चिन्तनोन्मुख करती है अपितु उसे आनन्द भी प्रदान करती है। अल्प शब्दों में अधिक कहना क्षणिका की विशेषता है। क्षणिका लोकप्रिय विधा के रूप में उभर रही है क्योंकि इसकी सामर्थ्य और प्रेरणा पथदर्शक बन जाती हैं। लघुकाय, छंदमुक्त, सम्प्रेषणीय और संगीत से सम्पन्न क्षणिका साहित्य श्रेष्ठ सम्भावनाओं से सम्पन्न है।
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