समकालीन क्षणिका खण्ड/अंक-02 अप्रैल 2017
रविवार : 13.08.2017
सुमन शेखर
01.
अचानक पलकें भीगीं
साँस हुई भारी
गुजरी माँ याद आई।
02.
धीमे-धीमे/गायब हुए
गाँव से
खेत और चरागाह
अब/वहाँ भी देखो
कंक्रीट के जंगल हैं।
03.
घूमती-उड़ती तितली
सूर्यमुखी पर/बैठ गयी
चुपचाप रस पी गई।
रेखाचित्र : कमलेश चौरसिया |
04.
सब कुछ
सुन्दर होता
तब भी/कविता न बनती
कविता तो जन्म लेती है/तब
जब असुन्दर से भिड़ंत होती है।
05.
तुम चुप/मैं चुप
हवा गुमसुम
आँखें बोल रही हैं
मन के भेद खोल रही हैं।
- नजदीक पेट्रोल पम्प, ठाकुरद्वारा, पालमपुर-176102, जिला कांगड़ा (हि.प्र.)/मो. 09418239187
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