समकालीन क्षणिका खण्ड/अंक-02 अप्रैल 2017
रविवार : 13.08.2017
नरेश उदास
01.
चीटियाँ चलती हैं
लाइन बनाकर/साथ-साथ
चीटियाँ चलती हैं
एक साथ
चीटियाँ चढ़ती हैं
फाँदती हैं दीवारें!
02.
बच्चा/बात-बात पर रोता है
बात-बात पर गुस्साता है
बच्चा टी.वी. से
यही तो सीख रहा है
आजकल!
03.
सोते हुए/सपने लेता हूँ
जागता हूँ तो
मेरे सामने कठोर यथार्थ होता है
जिससे मुकाबला करता हूँ
ज़रा भी नहीं डरता हूँ।
04.
आसमान है धुआँ-धुआँ
हवा हो गई है जहरीली
रेखाचित्र : रमेश गौतम |
सुलझाओ सब मिलकर
यह पहेली।
05.
महानगर
रात भर जागता है
क्या-क्या नहीं पलता है
इसकी कोख में
लेकिन महानगर
इसकी परवाह/कब करता है!
- अकाश-कविता निवास, लक्ष्मीपुरम, सै. बी-1, पो. बनतलाब, जि. जम्मू-181123 (ज-क)/मो. 09418193842
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