समकालीन क्षणिका खण्ड/अंक-02 अप्रैल 2017
रविवार : 26.11.2017
रघुवीर सहाय
(09 दिसम्बर1929 - 30 दिसम्बर 1990)
(छायाचित्र : विक्कीपीडिया से साभार) |
{सुप्रसिद्ध कवि रघुवीर सहाय के काव्य संग्रह ‘‘सीढ़ियों पर धूप में’’ में अनेक लघ्वाकारीय कविताएँ हैं, जिन्हें क्षणिका माना जा सकता है। उनमें से कुछ यहाँ प्रस्तुत हैं। -डॉ. बलराम अग्रवाल, प्र. संपादक}
01. बौर
नीम में बौर आया
इसकी एक सहज गन्ध होती है
मन को खोल देती है गन्ध वह
जब मति मन्द होती है
प्राणों ने एक और सुख का परिचय पाया।
02 . घड़ी-2
नियमित नाप समय की करती है घड़ी
उसे क्या पता किस पर क्या बिपता पड़ी
उसे समय का इस्तेमाल कहाँ पता
वरना वह टिकटिक करती छोटी बड़ी।
03. वसन्त
वही आदर्श मौसम
और मन में कुछ टूटता-सा:
अनुभव से जानता हूँ कि यह वसन्त है।
04. मत पूछना
मत पूछना हर बार मिलने पर कि ‘कैसे हैं’
सुनो, क्या सुन नहीं पड़ता तुम्हें संवाद मेरे क्षेम का,
लो, मैं समझता था कि तुम भी कष्ट में होगी
तुम्हें भी ज्ञात होगा दर्द अपने इस अधूरे प्रेम का।
05. परिवर्तन
जानता हूँ उन सभी परिवर्तनों को
जो कि मुझमें अभी तक होते रहे हैं
देखिए ना,
पड़ा रहता था कभी मैं किलकता या अँगूठे को चूसता
या कभी पइयाँ फेंकता अपने खटोले में
तथा अब, बहुत कम, केवल ज़रूरत आ पड़े तब बोलता हूँ।
06. जभी पानी बरसता है
जभी पानी बरसता है, तभी घर की याद आती है
यह नहीं कि वहाँ हमारी प्रिया, बिरहिन, धर्मपत्नी है-
यह नहीं कि वहाँ खुला कुछ है पड़ा जो भीग जायेगा-
बल्कि यह कि वहाँ सभी कमरों-कुठरियों की दीवालों पर उठी छत है।
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