समकालीन क्षणिका खण्ड/अंक-02 अप्रैल 2017
रविवार : 19.11.2017
मंजू मिश्रा
01.
चाँदनी,
तारों के बटन लिए हाथ में,
ढूँढती रही रात भर ...
कुरता,
चाँद की नाप का
02.
यूँ भी हो कभी
कुछ तुम कहो न हम
रेखाचित्र : संदीप राशिनकर |
बस मौन बोले
और मन...
बरसों के जंग लगे
ताले खोले
03.
मोती होने को
ढूँढती रही बूँद-
गोद सीप की
और नक्षत्र स्वाति का
- ईमेल : manjumishra@gmail.com
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