समकालीन क्षणिका खण्ड/अंक-02 अप्रैल 2017
रविवार : 19.11.2017
उमेश महादोषी
01.
पत्थर देता है
पत्थर का जवाब
जंग के मैदान में
दूब हरियाती है
मेरी आँख है, कि
बार-बार धोखा खाती है!
02.
जब तुम
तय करती हो एक रास्ता...
जब तुम
चलती हो तेज कदमों से...
अच्छा लगता है
तुम्हारे पीछे चलना...
तुम... ऐसे ही...
03.
जितना
पढ़ लेता हूँ
जीवन का पाठ
नशे में
उतना ही
कौंध जाता हूँ
बादलों के बीच!
04.
शराब तो
मैं भी पीता हूँ
जानने के लिए-
रेखाचित्र : डॉ. सुरेन्द्र वर्मा |
कितनी कड़वाहट घोली गयी है
जीवन की तरलता में!
05.
जिसे सुनना नहीं
वह कहानी
किसने गढ़ी है...?
बात सिर्फ इतनी नहीं है
कि द्रोपदी
चौराहे पर खड़ी है!
06.
जो देखा गया है
कालचक्र की परिधि से
बाहर खड़े होकर
संभव नहीं है-
याद रख पाना
या सहेज पाना!
- 121, इन्द्रापुरम, निकट बी.डी.ए. कॉलोनी, बदायूँ रोड, बरेली-243001, उ.प्र./मो. 09458929004
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