Sunday, December 3, 2017

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका             ब्लॉग अंक- 03 / 01                  दिसम्बर  2017



रविवार  :  03.12.2017

‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।



राजेश ‘ललित’ शर्मा






01.

वक़्त को ,
पकड़ सकता था;
मैं भी, क़सम से।
क्षण भर ,
देर हुई;
और निकल गया
वो सर्र से।

02.

तुमने जो,
मुस्कराकर,
दिया था जो ज़ख़्म
अब भी हरा है।
टीस उठती है,
अब भी,
तुम हो कि;
लौट कर;
न आये कभी।

03.

मैं हूँ सवाल,
ख़ुद का?
मैं कहाँ ?
किसी का,
जवाब हूँ ?

04.

मैं ही निकला,
छायाचित्र :
अभिशक्ति गुप्ता 
कुछ कमअक्ल;
वो आया,
और समझा गया,
मुझे! मेरी ही,
बात का मतलब?

05े.

मुझे धूप को                                           
सीलन के उस पार ले जाना था;
उस पार ले जाने की उमंग और
ज़िंदगी को ज़ंग
एक साथ लग गया।

  • बी-9/ए, डीडीए फ़्लैट, निकट होली चाईल्ड स्कूल, टैगोर गार्डन विस्तार, नई दिल्ली-27/मो. 09560604484

2 comments:

  1. Shandaar kshinkae ekdum tazgi sir mehsoos hui pad Kar. Rajesh "Lalit"Sharma ji ko saadjuvaad. Samakalin Kshnika aur Aviram sahityaki ka abhaar.
    Tanu Dutta

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  2. उमेश जी का एवं "अविराम साहित्यिकी" का समकालीन क्षणिका में स्थान देने आभार एवं धन्यवाद।
    राजेश"ललित"शर्मा

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