समकालीन क्षणिका खण्ड/अंक-02 अप्रैल 2017
रविवार : 29.10.2017
अनिता मण्डा
01.
नदियों ने बड़ा धोखा दिया
रख लिए मेरे सारे सिक्के,
जो आँखें बंद कर
मन में मुराद माँग
फेंके थे मैंने!!
02.
नदी का सूखना अपशकुन है,
रेखाचित्र : बी. मोहन नेगी |
कुछ मत मानो चाहे
पर इतिहास गवाह है
जब-जब सूखी हैं नदियाँ
समा गई भूमि में
कई सभ्यताएँ!!
03.
वो सितारे
खुद ही टूट रहे थे
वो मेरी मन्नत कहाँ से
पूरी करते!!
- आई-137, द्वितीय तल, कीर्ति नगर, दिल्ली-110015/फोन 08285851482
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