समकालीन क्षणिका खण्ड/अंक-02 अप्रैल 2017
रविवार : 22.10.2017
कमलेश सूद
01.
सुनामी
जिन्दा है आज भी
उन आँखों में
देखे हैं मंजर मिटते जिन्होंने
बहते रिश्तों के!
02.
बिटिया तुम्हारी हँसी से
खिल-खिल उठता है आँगन मेरा
बजती है झाँझर तेरी
नाच उठता है मन-मयूरा!
03.
वृद्धाश्रमों में बढ़ती संख्या
बेरौनक, पत्थर से चेहरे
खाली रास्तों को ताकती
छाया चित्र : बलराम अग्रवाल |
सपाट नज़रें
बयान कर रही हैं-
घर-घर की कहानी!
04.
बुरे समय को पहचान अब
कुत्ते-बिल्लियाँ भी
एक हो गये हैं
आदमी ही नहीं समझता
यह बात और है!
- वार्ड नं. 3, घुघर रोड, पालमपुर-176061 (हि.प्र.)/मोबा. 09418835456
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