समकालीन क्षणिका खण्ड/अंक-02 अप्रैल 2017
रविवार : 22.10.2017
सुनील गज्जाणी
मखमली सुबह
ठिठुर रही है
कोहरे में लिपटी
सूरज खड़ा
मुस्कुरा रहा
चाँद की मानिंद!
02.
...बच्चो जैसी
लग रही थी
शाखाओं पर खिलती कोपलें
छायाचित्र : उमेश महादोषी |
मानो बुजुर्ग!
03.
मृत्यु, कितना लंबा
धैर्य रखती है
ज़िंदगी के प्रति
उसका सिर्फ एक क्षण
लेने की खातिर!
- सुथारों की बड़ी गुवाड़, बीकानेर-334005, राज./मो. 09950215557
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