समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03 /113 मार्च 2020
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01. समकालीन क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श }
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रविवार : 01.03.2020
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
01.
घड़ी ने बजाए हैं
बारह
दूर कहीं
एक पहरेदार का स्वर
गूँजता है
जागते रहो
जागते रहो।
02.
व्यथित मन
भीतर की पीड़ा
न बाँट सका तो
आँखें बरबस रो दीं
सारा गम
बहता चला गया।
03.
गोदी में
छायाचित्र : उमेश महादोषी |
लेटे-लेटे
नन्हे-मुन्ने ने
मचलते हुए
माँ से अचानक पूछा था-
‘माँऽऽऽ आकाश कितना बड़ा है?’
माँ ने उसे
प्यार से थपथपाते
आँचल में ढकते हुए कहा था-
‘मेरी गोद से
छोटाऽऽऽ हैऽऽ रे।
- आकाश-कविता निवास, लक्ष्मीपुरम, सै. बी-1, पो. बनतलाब, जि. जम्मू-181123 (ज-क)/मो. 09419768718
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