समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03 /112 फरवरी 2020
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01. समकालीन क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श }
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रविवार : 23.02.2020
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
पुष्पा मेहरा
01.
रोया था मन
आँखें तो सिर्फ़
गवाही दे गईं !!
02.
फूल थे, खिले
अग-जग-रंजित कर
सेवा ऋण अदा कर मिट गए
उन्हीं के साथ पोषित काँटें
गिरने के बाद भी तने रहे!!
03.
छायाचित्र : उमेश महादोषी |
जंगल कटते रहे
उनके अन्तस् को
मौन चीरता गया।
04.
शहर आबाद हैं
सागर को तलाशती
नदी
अंतर तक सूख चुकी है।
- बी-201, सूरजमल विहार, दिल्ली-92/फ़ोन 011-22166598
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