समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-04/369 जनवरी 2025
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02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}
रविवार : 26.01.2025
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
राजेश ललित शर्मा
01. डूबती नाव
नाव में
छेद ही छेद थे
मैं न देख सका
अब नाव में
पानी भरा है
मझधार में है
हिचकोले खाती
नाव डूबने को है
02. देर ही देर
ज़रा देर हो गई है?
अंधेर भी हो गया है।
और भी अंधेर
होना बाकी है!
भगवान अभी घर पर
नहीं हैं!
भगवान अभी छुट्टी
पर हैं!
आयेंगे तो पता चलेगा?
देर हो गई है
या अंधेर अभी जारी रहेगा।
03. अंजुली भर धूप
आई थीरेखाचित्र : कमलेश चौरसिया
मेरे जीवन
आँगन में
अँजुली भर धूप
फिर फिसल गई
मेरी उम्र की तरह
शाम ढली
दीप जला
न बाती जली
रात हुई
निपट अँधेरा
ऐसा डूबा सूरज
न फिर हुआ सवेरा।
- बी-9/ए, डीडीए फ़्लैट, निकट होली चाईल्ड स्कूल, टैगोर गार्डन विस्तार, नई दिल्ली-27/मो. 09560604484
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