Sunday, January 19, 2025

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका              ब्लॉग अंक-04/368                          जनवरी 2025

क्षणिका विषयक आलेखों एवं विमर्श के लिए इन लिंक पर क्लिक करें-

01. समकालीन क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}

रविवार  : 19.01.2025
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।

सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!  



विष्णु सक्सेना



 

01. डर

टूट गया 

एक शीशा और,

बिखर गया काँच-

धरती की चादर पर।

कौन समेटे?

सबको 

अपने-अपने 

हाथों का डर है!!


02. शायद

पहाड़ी पर 

चढ़ती बस के 

अधजले धुएँ जैसी 

हैं- हमारी इच्छाएँ।

इसीलिए शायद 

जीवन की गाड़ी 

कुछ भारी चलती है!!


03. कैक्टसी हवाएँ 

भगवा के रंग 

रेखाचित्र : रमेश गौतम 

आसमान की लाली 

और बर्फ की सफेदी के 

प्रश्न पर 

बँट गये लोग।

उनके बीच 

भर आया आकाश,

उसमें बहने लगी 

कैक्टसी हवाएँ-

भगवा के रंग और बर्फ की

सफेदी के प्रश्न पर!!

  • एसजे-41, शास्त्री नगर, गाज़ियाबाद-201002, उ. प्र./मो. 09896888017

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