Sunday, January 9, 2022

क्षणिका चयन-01 : मुद्रित अंक 01 व 02 के बाद

समकालीन क्षणिका                      ब्लॉग अंक-03 /210                         जनवरी 2022 

क्षणिका विषयक आलेखों एवं विमर्श के लिए इन लिंक पर क्लिक करें-

01. समकालीन क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श}
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}

रविवार  : 09.01.2022
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।

सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!


उमेश महादोषी





01.

एक छतरी
ऐसी भी हो
जो कोहरे से बचा सके
शीत में तपा सके।

02.

इस शीत में
सबकुछ जम गया है
तन भी, मन भी

सूरज तक परेशान है-
थोड़ा-सा ताप मिल जाये
छायाचित्र : अभिशक्ति गुप्ता 
तन भले जमा रहे
मन थोड़ा पिघल जाये!

03.

शीत की गोद में
धूप खिलखिलाती है
कोहरा रूठ जाता है
और जैसे ही मौका मिलता है
धूप को धकेलकर 
गोद में खुद बैठ जाता है
  • 121, इंदिरापुरम, बीडीए कालोनी, बदायूं रोड, बरेली-243001, उ. प्र./मो. 09458929004 

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