समकालीन क्षणिका ब्लॉग अंक-03 /212 जनवरी 2022
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01. समकालीन क्षणिका विमर्श { क्षणिका विमर्श}
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}
रविवार : 23.01.2022
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
02. अविराम क्षणिका विमर्श {क्षणिका विमर्श}
रविवार : 23.01.2022
‘समकालीन क्षणिका’ के दोनों मुद्रित अंकों के बाद चयनित क्षणिकाएँ। भविष्य में प्रकाशित होने वाले अंक में क्षणिकाओं का चयन इन्हीं में से किया जायेगा।
सभी रचनाकार मित्रों से अनुरोध है कि क्षणिका सृजन के साथ अच्छी क्षणिकाओं और क्षणिका पर आलेखों का अध्ययन भी करें और स्वयं समझें कि आपकी क्षणिकाओं की प्रस्तुति हल्की तो नहीं जा रही है!
सुरेन्द्र वर्मा
01. ध्वस्त परिवेश
कितनी आँधियाँ चलीं
सारी स्मृति
धूल धूल हो गई
इस ध्वस्त परिवेश में
एकान्त में बैठा हूँ
अब तुम्हारा नाम जपता हूँ
02. कब चाहा
वर्षा में भीगते हम दोनों
हँसते-गाते रहे
हमने कब चाहा था
कोई तेज और खेश्क हवा चले
और हम सूख जाएँ
रेखाचित्र : डॉ. सुरेंद्र वर्मा |
03. रात का इन्तजार
बड़े सुख की तलाश में
मैंने तमाम
छोटे-छोटे सुखों को अनदेखा किया
और अब इस सुन्दर सांध्य बेला में
सिर्फ रात का इन्तज़ार है
- 10 एच आई जी, 1, सर्कुलर रोड, इलाहाबाद-211001, उ.प्र./मो. 09621222778
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